रुपया 90 के पार लुढ़का: क्या होगा आगे? RBI नीति, विदेशी प्रवाह और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर नजरें

भारतीय रुपया बुधवार को पहली बार 90 डॉलर प्रति के ऐतिहासिक निचले स्तर पर फिसल गया, जो वैश्विक और घरेलू दबावों का नतीजा है। शुरुआती कारोबार में यह 90.11 तक गिर गया, जिससे व्यापारियों में हड़कंप मच गया। विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी, वैश्विक स्तर पर मजबूत डॉलर और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनिश्चितता ने रुपये पर भारी दबाव डाला।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 3 दिसंबर 2025 को डॉलर के मुकाबले रुपया 89.92 पर कारोबार कर रहा है, जो पिछले हफ्ते के 89.15 के निचले स्तर से ऊपर है लेकिन दबाव बरकरार है। अब सवाल यह है कि क्या रुपया स्थिर होगा या और गिरेगा? विशेषज्ञों की नजरें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की 5 दिसंबर की नीति घोषणा, विदेशी धन प्रवाह और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर टिकी हैं।

LKP सिक्योरिटीज के वीपी रिसर्च एनालिस्ट (कमोडिटी एंड करेंसी) जतिन त्रिवेदी ने कहा, “रुपये का 90 के नीचे गिरना भारत-अमेरिका व्यापार सौदे की पुष्टि न होने और समयसीमाओं में बार-बार देरी का परिणाम है। बाजार अब सामान्य आश्वासनों के बजाय ठोस आंकड़ों की मांग कर रहा है, जिससे पिछले कुछ हफ्तों में रुपये की बिकवाली तेज हुई।” उन्होंने बताया कि रिकॉर्ड ऊंचे धातु और सोने के दामों ने भारत के आयात बिल को बढ़ा दिया है, जबकि अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक मांग में कमी से निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर हुई है। इससे इक्विटी बाजारों में कमजोरी आई, खासकर खनिज ईंधन, मशीनरी, विद्युत उपकरण और रत्नों जैसे आयात-निर्भर क्षेत्रों में।

रुपये पर अतिरिक्त दबाव विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली से आया, जिन्होंने नवंबर में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक निकाले। वैश्विक डॉलर इंडेक्स 106 के ऊपर मजबूत बना हुआ है, जो फेडरल रिजर्व की सख्त नीति का संकेत देता है। घरेलू स्तर पर, कमजोर निर्यात आंकड़े और बढ़ती CAD (करंट अकाउंट डेफिसिट) ने स्थिति बिगाड़ी। त्रिवेदी ने कहा, “RBI की हल्की हस्तक्षेप ने गिरावट को तेज किया। तकनीकी रूप से रुपया गहराई से ओवरसोल्ड है; 89.80 के ऊपर वापसी जरूरी है।”

RBI की 3-5 दिसंबर की मौद्रिक नीति समिति (MPC) बैठक महत्वपूर्ण होगी। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि समिति रेपो रेट को 5.50% पर स्थिर रखेगी और न्यूट्रल स्टांस बरकरार रखेगी। हालांकि, डॉविश टोन में ब्याज दर कटौती का संकेत हो सकता है, जो रुपये को सहारा देगा। FY26 के लिए GDP विकास अनुमान 6.8% और मुद्रास्फीति 2.6% पर रिवाइज्ड हो सकता है। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा 5 दिसंबर सुबह 10 बजे घोषणा करेंगे, जिसका लाइव प्रसारण RBI की वेबसाइट और यूट्यूब पर होगा। यदि RBI हस्तक्षेप बढ़ाता है, तो स्थिरीकरण संभव है; अन्यथा 91 तक गिरावट का खतरा है।

भारत-अमेरिका व्यापार सौदा रुपये के लिए राहत का बड़ा स्रोत हो सकता है। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने 28 नवंबर को कहा कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) का पहला चरण वर्षांत तक पूरा हो सकता है, जिसमें पारस्परिक टैरिफ मुद्दे हल होंगे। भारत श्रम-गहन निर्यात जैसे कपड़ा, चमड़ा, रत्न, केमिकल्स, प्लास्टिक और कृषि उत्पादों (केला, अंगूर) पर टैरिफ छूट चाहता है, जबकि अमेरिका औद्योगिक सामान, डेयरी, ऑटोमोबाइल (ईवी), वाइन, पेट्रोकेमिकल्स और जीएम कृषि उत्पादों पर।

ट्रंप प्रशासन के 50% टैरिफ (25% + 25%) को अलग फ्रेमवर्क में हल करने की कोशिश हो रही है। छह दौर की वार्ता पूरी हो चुकी है, लेकिन वाशिंगटन की नई नीतियों से देरी हुई। यदि सौदा फाइनल होता है, तो व्यापार $191 बिलियन से $500 बिलियन (2030 तक) दोगुना हो सकता है, जो रुपये को मजबूत करेगा।

विश्लेषकों का मानना है कि रुपये में अस्थिरता बनी रहेगी। तत्काल प्रभाव आयात-भारी क्षेत्रों पर पड़ेगा—ईंधन, इलेक्ट्रॉनिक्स और आवश्यक आयात महंगे होंगे। उपभोक्ता जल्द ही महसूस करेंगे। अगले संकेत RBI नीति, फेड कमेंट्री और व्यापार वार्ता से आएंगे।

त्रिवेदी ने सलाह दी, “90 के ऊपर स्थिरीकरण जरूरी; अन्यथा 91.50 तक स्लाइड हो सकती है।” वैश्विक सेंटिमेंट में छोटे बदलाव भी रुपये को हिला सकते हैं।

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