Wi-Fi को टाटा बाय-बाय, इस तकनीक से इंटरनेट चलेगा ‘सांय-सांय’
नई दिल्ली। देश में 4G तकनीक आए ज्यादा समय नहीं बीता है। इसके आने के बाद ही 5G के बारे में भी रिपोर्ट आने लगीं। लेकिन 4G तकनीक उस तरह की स्पीड नहीं दे पा रहा जैसा मिलना चाहिए, इस पर भी कई रिपोर्ट आईं। इसलिए हम आज भी Wi-Fi पर ज्यादा भरोसा करते हैं। हालांकि अब एक ऐसी तकनीक आने वाली है जो मौजूदा इंटरनेट स्पीड से 100 गुना तेज होगी।
ये तकनीक किसी बड़े देश के नामी विशेषज्ञ के कारण नहीं बल्कि ‘नए हिन्दुस्तानी दिमाग’ की उपज के कारण सम्भव हो पाएगा। अपनी प्रतिभा के दम पर इस अदभुत विषय के बारे में 27 साल के दीपक सोलंकी ने सोचा।
इंजिनियरिंग के छात्र सोलंकी कुछ तेज करना चाहते थे। साल 2012 की बात है जब सोलंकी ने व्यक्तिगत प्रोप्रायटरशिप वाले बिजनस का पंजीकरण करवाया, जो लाइट फिडेलिटी (Li-Fi) तकनीक वाले क्षेत्र में काम करने वाली थी।
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Li-Fi ऐसी तकनीक है, जो डेटा ट्रांसमिशन को सपॉर्ट करता है या प्रकाश का इस्तेमाल कर इंटरनेट की स्पीड बढ़ाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के प्रफेसर हेराल्ड हास ने 2011 के TED ग्लोबल टॉक में इस अविष्कार के बारे में जानकारी दी थी।
यह तकनीक नेटवर्क, मोबाइल हाई-स्पीड कम्युनिकेशन के लिए LED बल्ब का इस्तेमाल करता था। इसमें Li-Fi के जरिए इंटरनेट स्पीड Wi-Fi की तुलना में 100 गुनी ज्यादा तेज होने का दावा किया गया है।
विएलमन्नी रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट (इंडिया) के फाउंडर एवं सीईओ सोलंकी ने कहा, ‘जब मैं Li-Fi तकनीक की जांच-परख कर रहा था तो मैंने इसे बड़ा ही रोमांचक पाया। मैंने इसपर एक दोस्त के साथ काम करना शुरू किया और मुझे बड़ा अच्छा परिणाम मिला।’
2013 की गर्मियों तक सोलंकी ने इस तकनीक के प्रोटोटाइप पर काम करना शुरू कर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि इस क्रांतिकारी तकनीक को सपोर्ट जरूर मिलेगा।
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27 वर्षीय सोलंकी ने कहा, ‘मैं लाइट के जरिए डेटा ट्रांसमिट करने में सफल हो गया था और शुरू में मैंने सोचा कि हमें किसी लाइटिंग कंपनी के पास जाना चाहिए क्योंकि इस तकनीक में LED बल्ब शामिल था। हालांकि किसी ने भी इसमें रुचि नहीं दिखाई। तब मैं निवेशकों के पास फंड जुटाने पहुंचा। फिर मैं अपने प्रॉडक्ट के प्रोटोटाइप से वर्किंग मॉडल की तरफ बढ़ा।’
हालांकि, इतने के बाद भी सोलंकी को निराशा ही हाथ लगी। कोई भी निवेशक यह नहीं समझ पा रहा था कि सोलंकी क्या कर रहे हैं और उनका प्रोटोटाइप को या तो साइड में रख दिया जाता या फिर वैज्ञानिक परीक्षण तथा समय से बहुत पहले की बात कह खारिज किया जाता रहा।
ऐसे में अपने सपने को जीवित रखने के लिए सोलंकी ने विभिन्न कंपनियों में प्रॉडक्ट कंसल्टिंग की नौकरी करनी शुरू की। 2014 में उन्हें इस्तोनिया में बुल्डइट हार्डवेयर कंपनी में काम करने का मौका मिला।
उन्होंने कहा, ‘यहां उनके आइडिया को पंख लगे, उन्होंने कुछ पैसे जुटाए और अपने प्रॉडक्ट को इंप्रूव किया और फिर से निवेशकों से संपर्क साधा। हमें इस कंपनी से कुछ बल मिला और हम इस्तोनिया से वापस आ गए।’
2015 की गर्मियों तक सोलंकी भारत वापस आ गए क्योंकि वह देश में अपनी R&D टीम बनाना चाहते थे। सोलंकी ने कहा, ‘इस्तोनिया छोटा सा देश है और वहां इंजिनियरिंग से जुड़े संसाधन काफी कम थे। इससे हमारे प्रॉडक्ट की कीमत बढ़ती।
इसलिए हमने भारत लौटने का फैसला किया। 2015 के अंत तक और 2016 के शुरुआत में हमें यूरोपीय निवेशकों से फंड मिला और कुछ क्लाइंट बनाने में भी हम सफल रहे।
ऐसे काम करती है Li-Fi तकनीक
यह तकनीक कैसे काम करती है इसपर विएलमन्नी ने दो अलग-अलग डिवाइस बनाए। एक डिवाइस इंडोर के लिए था और एक आउटडोर के लिए। इंडोर डिवाइस में एक ऐक्सेस पॉइंट और एक डोंगल होता है। Li-Fi ऐक्सेस पॉइंट भी Wi-Fi की तरह ही होता है जिसमें राउटर होता है।
सोलंकी ने कहा, ‘हम Li-Fi ऐक्सेस पॉइंट में लाइट के सोर्स के पास प्लग लगाते हैं। यानी जहां LED होता है। राउटर को LED और LED ड्राइवर के बीच प्लग किया जाता है। हमारे पास एक USB डोंगल भी होता है जिसके जरिए लैपटॉप, डेस्कटॉप या स्मार्ट डिवाइस से भी कनेक्ट किया जा सकता है।’ आउटडोर के लिए कंपनी के पास अलग डिवाइस होता है।