माता के इस अनोखे मंदिर में चढ़ता है मासूमों का खून
गोरखपुर। पूरे देश में नवरात्र की धूम मची है। मंदिरों और पंडालों में विभिन्न तरीकों से मां की आराधना हो रही है। लेकिन गोरखपुर के बांसगांव के दुर्गा मंदिर में मां भगवती को खुश करने के लिए स्थानीय लोग रक्त अर्पित करते हैं।
इस दुर्गा मंदिर में यूं तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है पर शारदीय नवरात्र के नवमी तिथि को यहां पर पूरे इलाके के हजारों क्षत्रियों लोगों का जमावड़ा होता है और शुभ मुहुर्त के बाद हर व्यक्ति के शरीर से काट कर रक्त निकाला जाता है और मां को चढ़ाया जाता है।
रक्त का यह चढ़ावा एक दिन के नवजात बच्चे से लेकर 100 साल तक के बुजुर्गों तक के शरीर को पांच जगहों से काटकर दिया जाता है।
मासूम बच्चों के शरीर के हिस्से कटने पर कई जगहों से रक्त निकलने से बच्चे रोते बिलखते हैं लेकिन आस्था के नाम पर उनके घाव पर दवा नहीं लगायी जाती है उसके स्थान पर मंदिर की भभूत मल दी जाती है। वहीं गांव वालों का मानना हैं कि इससे बच्चों को आज तक कोई बीमारी नहीं हुई है।
ऐसी मान्यता है कि रक्तबलि यहां हर साल देना अनिवार्य माना जाता है। वहीं इस गांव से जुड़े देश-विदेश में रहने वाले श्रीनेत वंश के लोग शारदीय नवरात्र के नवमी के दिन यहां पर आते हैं और मां दुर्गा के चरणों में रक्त अर्पित करते हैं।
करीब सौ साल से चली आ रही इस परंपरा में इस क्षेत्र के हर परिवार के पुरुष को रक्त का चढ़ावा अनिवार्य माना जाता है। गाँववालों का कहना है कि अगर लड़के की शादी नहीं होती है उसके एक अंग से खून चढ़ाया जाता है। वहीं शादीशुदा पुरुषों को शरीर के नौ जगहों पर काटा जाता है और रक्त को बेलपत्र में रखकर माँ दुर्गा की मूर्ति पर अर्पित किया जाता है।
कई दशकों पहले इस मंदिर पर जानवरों की बलि प्रथा काफी प्रचलित थी पर पिछले पचास सालों से यहां के क्षत्रियों ने मंदिर में बलिप्रथा बंद करवा दिया और अब यहां पर उनके खून से मां का अभिषेक होता है।
पहले दी जाती थी पशुबलि
गाँववालों के मुताबिक पहले यहां पशुओं की बलि देने की परंपरा थी। एक बलि कार्यक्रम के दौरान एक महात्मा चौपड़ दास शारदीय नवरात्र के अवसर पर आए। पशु बलि देखने के बाद उन्होंने लोगों को समझाया और अपना रक्त मां दुर्गा की प्रतिमा पर चढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
उसके बाद ये परंपरा अब तक चली आ रही है। हर शारदीय नवरात्र की नवमी को श्रद्घालु अपनी कुलदेवी की प्रतिमा पर रक्त चढ़ाते हैं।
यहां के लोग मानते हैं कि रक्त चढ़ाने से मां खुश होती हैं और उनका परिवार निरोग और खुशहाल रहता है। सैकड़ों सालों से बांसगाव में इस परंपरा का निर्वाह आज की युवा पी़ढ़ी भी उसी श्रद्धा से करती है जैसे उनके पुरखे किया करते थे। सभी का मानना है कि क्षत्रियों का लहू चढ़ाने से मां दुर्गा की कृपा उन पर बनी रहती है।