पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल में कई किमी. फैली अवैध बस्तियां RPF की ढिलाई दे रही दुर्घटनाओं को आमंत्रण

 रेलवे पटरियों के किनारे बसी अवैध अस्थायी बस्तियां रेलवे के लिए नासूर बन गई हैं। एक बार इन्हें हटाया जाता है? और चंद माह बाद, यह फिर से गुलजार हो जाती है। उत्तर व पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के अंतर्गत आने वाले दर्जनों स्टेशनों के आउटर पर यह बस्तियां देखी जा सकती हैं। लखनऊ में डालीबाग, ऐशबाग, आलमनगर, गोमती नगर सहित स्टेशनों के बाहर इन्हें देखा जा सकता है। 

रेल सुरक्षा बल आरपीएफ का दावा है? इन्हें हटाया जाता है। सवाल खड़ा होता है? अगर हटाया जाता है? तो यह अवैध रूप से रह रहे लोग हमेशा के लिए क्यों नहीं हटते? फिलहाल इसका जवाब रेलवे के पास नहीं है। ट्रेनों में खानपान, चोरी व अपराध का ग्राफ भी इसके कारण बढ़ता है। उत्तर व पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के कार्य क्षेत्र में पचास से भी ज्यादा स्थान ऐसे हैं, जहां यह जॉल फैला हुआ है।

पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त अमित प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि आरपीएफ चरणबद्ध् तरीके से कार्रवाई करती है। लखनऊ मंडल की इंजीनियरिंग शाखा ने पूरी रूपरेखा तैयार की है। अब तो कोर्ट का निर्णय भी आ गया है, जल्द ही स्थानीय पुलिस को सूचना देकर कार्रवाई की जाएगी। उनके मुताबिक लखनऊ में कई स्थानों से पटरियों के किनारे बसे लोगों को हटाया जा चुका है, पटरियों के किनारे डेयरी संचालक हटाए गए हैं। इन डेयरी संचालकों के मावेशी पटरी पर आ जाते हैं, इसकी शिकायत ट्रेन ड्राइवर भी करते हैं, इसको लेकर कार्रवाई भी की गई है। 

इंजीनियरिंग शाखा की चाल सुस्त 

रेलवे की इंजीनियरिंग शाखा की चाल अगर तेज हो जाए और दो से तीन माह में पटरियों के किनारे बसे लोगों को हटाने का अभियान शुरू कर दिया जाए, तो चंद माह में रेलवे का सफर और सुहावना हो जाएगा। सूत्रों की माने तो आरपीएफ व इंजीनियरिंग शाखा की ढिलाई के कारण ही आज पटरियों के किनारे अवैध रूप से बस्तियां गुलजार हो रही हैं। 

दो तरह के होते हैं रेलवे में अतिक्रमण 

रेलवे अफसरों ने बताया कि पटरियों के किनारे दो तरह के अतिक्रमण लोगों ने कर रखे हैं। एक सॉफ्ट की श्रेणी में आता है और दूसरा हार्ड की श्रेणी में। सॉफ्ट श्रेणी वाले को रेल सुरक्षा बल आरपीएफ समय समय पर हटाती रहती है। वहीं हार्ड निर्माण जो रेलवे की जमीन पर कर लिया जाता है। इसकी सुनवाई रेलवे के अपर मंडल रेल प्रबंधक की अदालत में होती है। यहां कब्जा करने वाला अपने तर्क रखता है और रेलवे अपने। अंत में रेलवे स्थानीय जिला प्रशासन की मदद से उस पर कार्रवाई करता है। उस वक्ता एक मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में कार्रवाई होती है। स्थानीय पुलिस के साथ आरपीएफ सहयोग के लिए होती है। वहीं, रेलवे की धारा सेक्शन 147 ए के तहत रेलवे अस्थायी बस्ती बसाने वालों पर कार्रवाई करता है। इसमें रेलवे कोर्ट सजा या जुर्माना लगाकर कार्रवाई करता है। 

क्या कहते हैं अधिकारी ? 

पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के जनसंपर्क अधिकारी महेश गुप्ता के मुताबिक, रेलवे समय-समय पर पटरियों के किनारे बसी अवैध बस्तियों को हटाता है। अभियान में स्थानीय प्रशासन व पुलिस का आरपीएफ सहयोग करती है। रेलवे का भरसक प्रयास रहता है कि पटरियों के किनारे कोई स्थायी व अस्थायी निर्माण न हो और न ही कोई बसे। जल्द ही इंजीनियरिंग शाखा व आरपीएफ ऐसे लोगों पर स्थानीय प्रशासन के सहयोग से कार्रवाई करते हुए दिखेगी, पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। 

रेलवे एक्ट के तहत कार्रवाई (लखनऊ)

रेलवे एक्ट 145 स्टेशनों पर गंदगी व हंगामा करना : 150

रेलवे एक्ट 147 रेलवे जमीन पर अतिक्रमण : 170 

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