सुप्रीम कोर्ट का मीडिया को फरमान, सुर्खियों में न आएं जस्टिस कर्णन

सुप्रीम कोर्टनई दिल्ली। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी.एस. कर्णन को अवमानना का दोषी ठहराए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर उनके बयान प्रकाशित करने पर रोक लगा दी।

सर्वोच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ ने देश की शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाए जाने के मामले में न्यायमूर्ति कर्णन को दोषी ठहराते हुए छह महीने जेल की सजा भी सुनाई है।

शीर्ष अदालत का यह फैसला न्यायमूर्ति कर्णन को न्यायिक कार्य से रोके जाने के बावजूद उनके द्वारा कई न्यायिक आदेश जारी करने के बाद आया है।

न्यायमूर्ति कर्णन ने सोमवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 और संशोधित अधिनियम, 2015 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के आठ न्यायाधीशों को ‘सश्रम कारावास’ और उनमें से प्रत्येक पर एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सभी अदालतों और न्यायाधिकरणों को न्यायमूर्ति कर्णन द्वारा जारी किसी भी आदेश का संज्ञान नहीं लेने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति कर्णन जून में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

न्यायमूर्ति कर्णन ने जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मद्रास उच्च न्यायालय के विभिन्न न्यायाधीशों और अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

सर्वोच्च न्यायालय ने आठ फरवरी को न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कार्य करने पर रोक लगा दी थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने 10 मार्च को न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ वारंट जारी किया था और वह 31 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पेश हुए थे।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ कर्णन के आक्षेप जारी रहे और उन्होंने उन पर जातिगत भेदभाव का आरोप भी लगाया।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति कर्णन की मानसिक जांच का आदेश भी दिया था, जिसे कराने से उन्होंने इनकार कर दिया था।

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