सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का बढ़ा विश्वास, आपात स्थिति को संभालने की सीखीं..

लखनऊ: कांशीराम सांस्कृतिक स्थल (स्मृति उपवन) में आयोजित पांच दिवसीय आल इण्डिया कांग्रेस ऑफ़ आब्सट्रेकटिस एंड गायनेकोलोजी (AICOG-2020) के चौथे दिन शनिवार को उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई (यूपी टीएसयू) ने प्रथम संदर्भन इकाइयों (एफआरयू) के सुदृढीकरण में रीजनल रिसोर्स ट्रेनिंग सेंटर (आर. आर. टी.सी.) की भूमिका पर परिचर्चा की। इस अवसर पर भारत सरकार के डिप्टी कमिश्नर डॉ दिनेश बंसवाल ने कहा कि देश में पहली बार मेडिकल कालेजों और स्वास्थ्य विभाग का सम्मिलित रूप से किया गया यह सबसे सफल प्रयास है।

इसके तहत ब्लाक, तहसील व जिला स्तरीय अस्पतालों के चिकित्सकों को विशेष प्रशिक्षण देकर और मेंटरिंग (हैण्ड होल्डिंग सपोर्ट) करके आपात स्थिति को संभालने और सुरक्षित प्रसव की बारीकियां सिखाई गयी हैं। इससे उनका हौसला बढ़ा है। इस अभिनव प्रयोग का परिणाम रहा कि अब प्रथम संदर्भन इकाइयों पर सिजेरियन प्रसव भी कराये जा रहे हैं। यूपी के इस माडल को अब हम लोग अन्य राज्यों में भी लागू कर सकते हैं। डॉ उषा गंगवार, महाप्रबंधक, मातृत्व स्वास्थ्य, यूपीएनएचएम ने कहा कि आरआरटीसी माडल यूपी के 25 जिलों से विस्तारित कर पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए प्रयास करूंगी।

डॉ विनीता दास, विभागाध्यक्ष, क्वीन मेरी ने कहा कि रीजनल रिसोर्स ट्रेनिंग सेंटर की तरफ से चिकित्सकों की ट्रेनिंग और कार्यस्थल पर मेंटरिंग से प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं में परिवर्तन आया है। इससे सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। आरआरटीसी-एफआरयू कार्यक्रम को सफल बनाने में मेडिकल कालेज अहम् भूमिका निभा रहे हैं। इस कार्यक्रम से प्रदेश के आठ मेडिकल कालेज के फैकल्टी सदस्य जुड़े हैं जो 25 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों (एचपीडी) में काम्प्रेहेंसिव इमरजेंसी आब्सट्रेस्टिक केयर (सीमाक) सेवाओं को मजबूत बनाने में बेहतरीन कार्य किया है।

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन से डॉ. देवेंद्र खंडैत ने उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में यूपी टीएसयू के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि मेडिकल कालेज, एनएचएम और जिले की महिला चिकित्सकों ने महिलाओं को स्वस्थ रखने का जो बीड़ा उठाया है वह महिला सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस अवसर पर टीएसयू के अधिशाषी निदेशक डॉ. वसंत कुमार और जसजीत कौर एएमडी, यूपीएनएचएम भी उपस्थित रहीं।

बीएचयू की डॉ अंजलि ने कहा कि भौगोलिक दृष्टि से सोनभद्र और मिर्जापुर में कार्य करना बहुत कठिन है। लेकिन नर्स मेंटर की मदद से ही प्रतिकूल परिस्थिति में भी पीपीएच और एक्लेमसिया के मामले अब आसानी से संभाले जा रहे हैं। वहीं डॉ सविता भट्ट ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से श्रावस्ती, बलरामपुर और बहराइच निचले पायदान पर था। इन जिलों में महिला डॉक्टरों की तैनाती कम है। लेकिन नर्स मेंटर के आने से महिला डॉक्टर के अलावा पुरुष डॉक्टर भी अब बेहतरीन कार्य कर रहे हैं।

परिचर्चा का संचालन यूपी टीएसयू के डॉ. विद्युत सरकार ने किया। कार्यक्रम के आखिर में यूपी टीएसयू की डॉ. सीमा टंडन ने परिचर्चा में भाग लेने के लिए सभी लोगों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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चिकित्सकों को किया सम्मानित परिचर्चा के बाद यूपी टीएसयू के “बडी-बडी” माडल के तहत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 12 चिकित्सकों को एएमडी जसजीत कौर और डॉ चंद्रावती, ओर्गानाइसिंग चेयरपर्सन, AICOG-2020 ने सम्मानित किया गया। परिचर्चा के दौरान आठ मेडिकल कालेजों के नोडल फैकल्टी सदस्य और उच्च प्राथमिकता वाले जिलों की एफआरयू से चैम्पियन विशेषज्ञ और चिकित्सा अधिकारी उपस्थित रहे।

क्या है आरआरटीसी

रीजनल रिसोर्स ट्रेनिंग सेंटर (आरआरटीसी) द्वारा चिकित्सकों की ट्रेनिंग और कार्यस्थल पर मेंटरिंग से प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन आया है । पहले चरण में प्रदेश के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय-लखनऊ, जवाहरलाल नेहरु मेडिकल कालेज-अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, मोतीलाल नेहरु मेडिकल कालेज-प्रयागराज और बाबा राघव दस मेडिकल कालेज- गोरखपुर के सहयोग से प्रदेश के 25 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों (एचपीडी) के 50 रेफरल यूनिट्स के चिकित्सकों को ट्रेनिंग दी गयी । दूसरे चरण में गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज-कानपुर, सरोजनी नायडू मेडिकल कालेज-आगरा, बीएचयू-वाराणसी और उत्तर प्रदेश मेडिकल साइंस युनिवर्सिटी, सैफई-इटावा को जोड़ा गया ।

आरआरटीसी की दो दिवसीय आवासीय ट्रेनिंग के दौरान विषय विशेषज्ञों द्वारा मातृ, नवजात व शिशु स्वास्थ्य से जुड़ीं हर बारीकी को बताया जाता है और उसका अभ्यास भी कराया जाता है । यही नहीं ट्रेनिंग के बाद हर तीसरे महीने वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम कार्यस्थल पर पहुंचकर उनके कार्यों का आंकलन करती है और जहाँ पर भी कमी नजर आती है, उसके बारे में फिर से विस्तार से बताती भी है ।

ट्रेनिंग के दौरान डमी के द्वारा इस तरह का अभ्यास कराया जाता है कि इमरजेंसी में किसी केस के आने के बाद किस तत्परता के साथ क्या-क्या कदम उठाने पड़ते हैं, उन सभी के बारे में विस्तार के साथ समझाया जाता है । इस अभ्यास से चिकित्सकों की गुणवत्ता में भरपूर सुधार भी नजर आया है, जिसके चलते सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है ।ट्रेनिंग और अभ्यास के बाद कई चिकित्सकों ने खुले मन से माना है कि उन्हें इलाज करते कई साल हो गये हैं किन्तु सच कहूँ तो सही मायने में अब जाकर आपात स्थिति को सँभालने का हौसला मिला है।

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