रोशनी जमीन घोटाला: रविशंकर प्रसाद का आरोप, फारूक अब्दुल्ला ने 7 कनाल जमीन पर किया अवैध कब्जा

जम्मू-कश्मीर के रोशनी जमीन घोटाला मामले में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने इस मामले में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर 7 कनाल जमीन पर अवैध तरीके से कब्ज़ा करने का आरोप लगाया है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर का रोशनी जमीन घोटाला इस वक़्त सुर्ख़ियों में है। 25 हजार करोड़ के इस जमीन घोटाले में कई राजनीतिक दलों के नेताओं और नौकरशाहों का नाम सामने आया है, जिनमें फारूक अब्दुल्ला का नाम भी शामिल है।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि फारूक अब्दुल्ला ने 1998 में 3 कनाल जमीन खरीदी थी। इसके बाद उन्होंने अवैध तरीके से 7 कनाल जमीन पर कब्जा कर लिया। यह प्रभावशाली लोगों द्वारा की गयी लूट थी। इस गड़बड़ी के लिए उन्होंने रोशनी अधिनियम का सहारा लिया था, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

जम्मू-कश्मीर के रोशनी जमीन घोटाला मामले में फारूक अब्दुल्ला के दामन पर भी दाग लगे हैं। जम्मू के सजवान में फारूक अब्दुल्ला का मकान है, जो 10 कनाल जमीन पर बना हुआ है। आरोप है कि इस 10 कनाल जमीन में 3 कनाल जमीन फारूक अब्दुल्ला की है, किन्तु बाकी 7 कनाल जमीन जंगल की है, जिस पर रोशनी एक्ट के तहत कब्ज़ा कर लिया गया।वहीं रोशनी जमीन घोटाला में नाम सामने आने के बाद फारुक अब्दुल्ला ने सफाई दी है। उन्होंने कहा कि उस इलाके में सिर्फ मेरा ही घर नहीं है। वहां सैकड़ों घर हैं। यह मुझे परेशान करने की कोशिश है, उन्हें करने दीजिये।

जम्मू कश्मीर राज्य भूमि अधिनियम, 2001 तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार जल विद्युत परियोजनाओं के लिए फंड इक्कठा करने के मकसद से लायी थी। इस कानून को रोशनी नाम दिया गया। इस कानून के अनुसार, भूमि का मालिकाना हक उसके अनधिकृत कब्जेदारों को इस शर्त पर दिया जाना था कि वे लोग मार्केट रेट पर सरकार को भूमि का भुगतान करेंगे। इसकी कट ऑफ 1990 में तय की गयी थी। शुरुआत में सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले किसानों को कृषि के लिए मालिकाना हक दिया गया। हालांकि इस अधिनियम में दो बार संशोधन किये गए, जो मुफ़्ती सईद और गुलाम नबी आजाद की सरकार के कार्यकाल में हुए।उस दौरान इस कानून की कट ऑफ पहले 2004 और बाद में 2007 कर दी गयी। 2014 में सीएजी की रिपोर्ट आयी जिसमें खुलासा हुआ कि 2007 से 2013 के बीच जमीन ट्रांसफर करने के गड़बड़ी हुई। सीएजी रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकार ने 25 हजार करोड़ के बजाय सिर्फ 76 करोड़ रूपये ही जमा कराए। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के आदेश पर इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।

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