महाराष्ट्र की ये महिला किसान क्यों निकलवा रही हैं अपनी बच्चेदानी ?
महाराष्ट्र: साल 2018 में बड़ा आन्दोलन चलाया था किसानों ने| दिल्ली तक मार्च किया था| अपने हक़ के लिए| अपनी फसल के दामों के लिए| इन्हीं में शामिल थे महाराष्ट्र के गन्ना किसान| जिन्हें गन्ने की फसल के पैसे नहीं मिले थे| इस पर बहस हुई| बात चली| लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी बात हुई जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया|
गया तो तब, जब द हिन्दू बिजनेसलाइन में एक खबर छपी| खबर थी महाराष्ट्र के ही बीड जिले की| खबर ये थी कि यहां की औरतें पीरियड यानी मासिकधर्म से निजात पाने के लिए अपने यूट्रस (गर्भाशय) निकलवा देती हैं| क्यों? क्योंकि उनको गन्ने की कटाई करनी होती| उसमें पीरियड की वजह से छुट्टी लेना उनके लिए नुकसान का बायस होता है|
इस खबर पर लोगों का ध्यान गया| तब जांच पड़ताल हुई| इस मामले में नेशनल कमीशन ऑफ विमेन यानी राष्ट्रीय महिला आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी भेजा| हमारे महाराष्ट्र के संवाददाता महेंद्र मुधोलकर ने बीड गांव में जाकर बात की| कि आखिर वहां की सच्चाई क्या है| जो सामने आया, वो थोड़ा हटकर था|
वहां की लोकल एक्टिविस्ट हैं मनीषा टोकले| उन्होंने बताया कि गन्ने की कटाई बहुत मेहनत वाला काम है. उन्होंने बताया:-‘जो मेहनती या ज्यादा वजन उठाने का काम होता है उसका प्रेशर सीधा यूट्रस पर आता है|
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तो ये जो औरतें हैं, इनके जब यूट्रस के प्रॉब्लम होते हैं जैसे सफ़ेद पानी जाना, लाल पानी जाना| तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को रेगुलर हॉस्पिटल जाना, ये सारी चीज़ें होती हैं| और लगातार साल दो साल ट्रीटमेंट भी चलता रहता है|
इसमें भी 10-12-15-25 हजार रुपया खर्च होता है| ये मजदूर लोग हैं, तो उनको ऐसा लगता है कि यार ट्रीटमेंट में ही इतना खर्चा हो रहा है| डॉक्टर भी सलाह देता है कि ये अगर ना रहे तो क्या करना चाहिए| तो फिर उसकी यूट्रस निकाल दो| इस तरह का सजेशन डॉक्टर से आने के बाद, और उन्होंने साल-दो साल सारा प्रॉब्लम सफ़र किया रहता है तो औरतें बोलती हैं ठीक है फिर|
और ज़्यादातर ये ऐसी मजदूर औरतें हैं जो शुगरकेन कटर्स हैं| ऐसी स्थिति में ये जो औरतें वजन उठाने का काम करती हैं इन्हीं औरतों में ये ज्यादा प्रॉब्लम दिखाई देती है| फिर डॉक्टर के पास इलाज नहीं होता| उनको ऐसा लगता भी नहीं है तो उन्होंने इस तरह का धंधा शुरू कर दिया| कम उम्र की औरतों के भी यूट्रस निकालने का काम उन्होंने कर दिया| जबकि उसकी ज़रूरत नहीं है|
सरकार के अस्पतालों और प्राथमिक आरोग्य केन्द्रों का काम है ये, औरतों की काउन्सलिंग करना, उनकी बीमारियों के बारे में बताना और उस तरह का ट्रीटमेंट आगे चालू रखना| लेकिन ये काम प्रोपर्ली नहीं होता| इसकी वजह से ये महिलाएं प्राइवेट हॉस्पिटल की तरफ जाती हैं और प्राइवेट हॉस्पिटल के कुछ डॉक्टर इसका धंधा करते हैं| दस में से दो तीन महिलाओं के साथ तो ये हुआ ही होता है’.
डॉक्टर अशोक थोराट से बात हुई इस मामले में. जिला शल्य चिकित्सक हैं वो. उन्होंने बताया,-‘ये आरोप के बारे में हमारे आरोग्य विभाग के माननीय कमिश्नर साहब, हमारे जिले के जिलाधिकारी महोदय , दोनों के निर्देशन में हमने पिछले दो-तीन दिनों से इस केस के बारे में पूरी तहकीकात की है| हमारे 100 से ज्यादा अस्पतालों का हमने रिकॉर्ड मंगवाया है|
पिछले तीन सालों में इन 100 से ज्यादा हॉस्पिटल्स में करीब-करीब 4500 से ज्यादा ऐसी शस्त्र क्रिया (सर्जरी-शल्य क्रिया) हुई है| ये जो शस्त्र क्रिया हुई है उसमें ज़रूरत क्या थी| जरूरत है तो ऐसा कौन सा इंडिकेशन था. वो इंडिकेशन के हिसाब से हम डेटा एनलाईज कर रहे हैं| अगर इसमें कोई डॉक्टर बगैर किसी इंडिकेशन के ऐसी शस्त्र क्रिया करता है तो उसके बारे में हम जिलाधिकारी महोदय के दालान में बैठकर उनके सामने ये सब रखकर जो भी निर्णय लेना है, जो भी उन पर कार्रवाई करनी है, जो ज़रूरत है, वो हम निश्चित रूप से करने वाले हैं|’
डॉक्टर ने ये भी कहा कि जरूरत न होने पर भी ऐसी शस्त्र क्रिया ना हो, इसके लिए वो लोग पूरी कोशिश करेंगे. औरतों को इस बारे में जानकारी देने के लिए भी जो करना होगा वो करेंगे|
महाराष्ट्र का बीड जिला मजदूरों के सप्लायर के रूप में जाना जाता है| यहां की अधिकांश औरतें मजदूरी के काम में लगी हैं| उनकी जानकारी अपने शरीर और स्वास्थ्य को लेकर काफी कमजोर है| अगर उनको कोई मामूली समस्या भी होती है तो डॉक्टरों को उनको डर दिखाना आसान हो जाता है| कहा जाता है कैंसर हो जाएगा| इस डर के मारे वो गर्भाशय निकलवा देती हैं. सिर्फ पीरियड्स ही इसमें इकलौता फैक्टर नहीं हैं|