यश भारती के बंटवारे पर कोर्ट की नजर टेढ़ी, होगी आवार्ड वापसी!

लखनऊ।  इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सेंटर फॉर सिविल लिबर्टिज की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से बुधवार को जवाब मांगा है। याचिका में सरकार पर मनमाने ढंग से यशभारती सम्मान बांटने का आरोप लगाया गया है। सेंटर की वकील नूतन ठाकुर ने न्यायालय से कहा कि राज्य सरकार यश भारती पुरस्कार पाने वाले लोगों को 11 लाख रुपये और मासिक वेतन के रूप में भारी रकम प्रदान कर रही है, लेकिन यह सम्मान बेहद मनमाने ढंग से अपनी पसंद के लोगों को दिए गए। वहीं राज्य सरकार के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है।

मनमाने ढंग से यशभारती

न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार अरोड़ा तथा न्यायमूर्ति राजन रॉय की पीठ ने कहा कि यह सम्मान प्रदान करने के लिए लोगों के धन का इस्तेमाल किया गया और इसे इस तरह मनमाने ढंग से नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने संस्कृति मंत्रालय के सचिव को 23 जनवरी, 2017 को अगली सुनवाई के दौरान दस्तावेज के साथ आने के लिए कहा है।

याचिका में उच्च न्यायालय से साल 2012-16 के दौरान दिए गए यश भारती सम्मान का आकलन करने तथा जिन्हें नियमों को ताक पर रखकर यह सम्मान दिया गया, उनसे पैसे वापस लेने के लिए एक जांच समिति का गठन करने का अनुरोध किया गया है।

यश भारती सम्मान राज्य का सर्वोच्च सम्मान है। इसकी शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने की थी। आने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकारों ने इसे जारी रखा है।

इस सम्मान को लेकर समाज के विभिन्न हलकों से सत्तारूढ़ पार्टी पर भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात करने का आरोप लग चुका है। अतीत में इस सम्मान के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों की पत्नियों तथा कथित तौर पर अपनी पसंद के लोगों को नामित किया जा चुका है।

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