लगातार शोर आपके कानों को पहुंचा सकता है भारी नुकसान, जानें कैसें

तेज और लगातार शोर सुनने से या लंबे समय तक तेज आवाज के संपर्क में रहने से आपको कई फिजिकली और मानसिक परेशानियां हो सकती है। इसके साथ ही यह ऑफिस, घर आदि में हमारे काम, नींद और अन्य क्रिया-कलाप को भंग करता है। जी हां लगातार शोर मानव जीवन पर बुरा असर पड़ता है। मुख्यतः यातायात के साधन, जैसे हवाई जहाज, रेल, ट्रक, बस या निजी वाहन आदि, इस तरह के प्रदूषण फैलाते हैं। इनके अलावा फैक्ट्रियां, तेज ध्वनि वाले लाउडस्पीकर, निर्माण कार्य आदि से भी शोर फैलता है। साथ ही लगातार ईयरफोन से तेज म्‍यूजिक सुनने की आदत भी तेज शोर का कारण बनता है। लेकिन क्‍या आप जानती हैं कि लगातार और तेज शोर से सुनने की शक्ति भी चले जाने का खतरा होता है।

लगातार शोर आपके कानों को पहुंचा सकता है भारी नुकसान, जानें कैसें

जी हां लगातार शोर-शराबे के बीच रहने से कान को नुकसान पहुंचता है और इंसान की सुनने की क्षमता घटने लगती है। डब्ल्यूएचओ का आंकड़ा बताता है कि दुनिया में 12 से 35 वर्ष उम्र के एक अरब से ज्यादा युवा मनोरंजन के लिए शोर के हाई लेवल के बीच रहते हैं, जिससे उन्हें बाद में सुनने में दिक्कत हो सकती है। आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग एक-तिहाई लोग सुनने में अक्षम होते हैं।
डब्ल्यूएचओ का एक और आंकड़ा कहता है कि दुनियाभर में लगभग 46.6 करोड़ लोगों को सुनने में कठिनाई होती है। अगर कोई उपाय नहीं किया गया तो वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 90 करोड़ हो जाएगी। इसलिए कण के नुकसान की पहचान के लिए प्रारंभिक जांच और इलाज पर जोर दिया जाना जरूरी है।

सुनने की क्षमता कम होने के कारण

  • सुनने की क्षमता घटने के पीछे जो कारण हो सकते हैं, उनमें प्रमुख हैं-
  • परिवार में पहले से ही इस समस्या का होना
  • इंफेक्‍शन
  • तेज शोर
  • दवाइयां और बढ़ती उम्र आदि।
  • इनमें से कई कारणों से सुनने की क्षमता कम हो सकती है, जबकि टीकाकरण और शोर पर प्रतिबंध लगाकर इसे रोका जा सकता है। रूबेला, मैनिनजाइटिस और मम्प्स जैसे इंफेक्‍शन के परिणामस्वरूप बच्चों में सुनने की क्षमता घटने की प्रवृत्ति को टीकाकरण जैसी रणनीतियों से प्रभावी रूप से रोका जा सकता है।

एक्‍सपर्ट की राय

हेल्थ केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल का कहना है कि समय के साथ हर दिन होने वाले शोर से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। जोरदार शोर के बीच लगातार रहने से संवेदी नर्वस को नुकसान हो सकता है। 90 डीबी (जो कि लॉन में घास काटने की मशीन या मोटरसाइकिल से निकलने वाले शोर के बराबर है) के संपर्क में 8 घंटे, 95 डीबी में 4 घंटे, 100 डीबी में 2 घंटे, 105 डीबी (पॉवर मॉवर) में एक घंटा और 130 डीबी (लाइव रॉक संगीत) में 20 मिनट ही रहने की अनुमति दी जाती है।

उन्होंने कहा कि 110-120 डीबी पर बजने वाले संगीत में आधे घंटे से भी कम समय रहने पर कान को नुकसान पहुंच सकता है। शॉर्ट ब्लास्ट यानी 120 से 155 डीबी से अधिक शोर, जैसे कि पटाखे की आवाज से गंभीर सेंसरीन्यूरल हियरिंग लॉस, दर्द या हाइपरकेसिस (तेज शोर से जुड़ा दर्द) हो सकता है। अधिकांश बम 125 डीबी से अधिक का शोर पैदा कर सकते हैं।’ यह अनुशंसा की जाती है कि जो लोग लगातार 85 डीबी से अधिक के शोर के बीच में रहते हैं, उन्हें मफ या प्लग के रूप में श्रवण सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि शोर व्यक्ति की बॉडी को सिम्फेथेटिक मोड की ओर ले जाता है। इसलिए, हमें परिवेशीय शोर के लेवल को कम करने के लिए धीरे से बोलने का प्रयास करना चाहिए। अब देखा जा रहा है कि क्लास रूम या लेक्चर हॉल या डीजे म्यूजिक में माइक के लिए उपयोग किए जाते हैं। उपयोग किए जाएं, लेकिन वॉल्यूम कम रखें। इसके अलावा, दर्शकों से पूछें कि क्या आप मेरी आवाज सुन पा रहे हैं? पहले माइक के बिना बात करने का प्रयास किया जाना चाहिए।’

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शोर से बचने के एचसीएफआई के टिप्‍स

  • स्कूलों और अस्पतालों जैसे क्षेत्रों के आसपास यातायात का प्रवाह जितना संभव हो, कम से कम किया जाना चाहिए। ऐसे स्थानों के पास साइलेंस जोन और हॉर्न का प्रयोग न करें, जैसे साइनबोर्ड लगाए जाने चाहिए।
  • मोटरबाइक में खराब साइलेंसर नहीं होने चाहिए और शोर मचाने वाले ट्रकों को भी दुरुस्त किया जाना चाहिए।
  • पार्टियों और डिस्को में लाउडस्पीकरों के उपयोग के साथ-साथ सार्वजनिक घोषणा प्रणाली की जांच होनी चाहिए और इन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • साइलेंस जोन में शोर संबंधी नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  • सड़कों और आवासीय क्षेत्रों में पेड़ लगाने से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है, क्योंकि वृक्ष ध्वनि को अवशोषित करते हैं।

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