स्वदेशी विमान वाहक में विलंब से नौसेना की क्षमता प्रभावित होगी : कैग

भारतीय नौसेनानई दिल्ली: सरकारी लेखा परीक्षक ने कहा है कि स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी) पोत की आपूर्ति में विलंब से भारतीय नौसेना की क्षमता प्रभावित होगी। नौसेना के दो विमान वाहकों में से एक सेवामुक्त होने की प्रक्रिया में है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने इस सप्ताह संसद में पेश एक रपट कहा है, “भारतीय नौसेना और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (जहां आईएसी फिट किया जा रहा है) के बीच परियोजना की समयसीमा को लेकर निरंतर असहमति बनी हुई थी और अभी भी कोई तारीख तय नहीं हो पाई है।”

रपट के मुताबिक, इस विलंब के कारण परियोजना के लिए मूल रूप से स्वीकृत 19,341 करोड़ रुपये की लागत बढ़ रही है। रपट में यह भी कहा गया है कि विमान वाहक की समग्र भौतिक प्रगति का आकलन नहीं किया जा सका। शिपयार्ड का कहना है कि विमान वाहक तय समय से पांच साल विलंब से 2023 में सौंपा जा सकता है।

भारतीय नौसेना करे दो विमान वाहक तैनात

आईएनएस विराट सेवामुक्त होने की प्रक्रिया में है और इस कारण भारत के पास केवल एक विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य ही शेष बचेगा, जबकि भारत को अपने पश्चिमी और पूर्वी समुद्र तट पर कम से कम दो विमान वाहकों को तैनात करने की जरूरत है। आईएनएस विराट इस सप्ताह के प्रारंभ में ही मुंबई से कोच्चि की अपनी विदाई यात्रा पर निकल पड़ा है।

सीएजी की रपट के मुताबिक, “हालांकि भारतीय नौसेना इस बात से वाकिफ है कि उसे किसी भी समय मुकाबले के लिए दो विमान वाहकों की जरूरत है। लेकिन सेवारत आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विराट के 2016-17 में सेवामुक्त होने की संभावना और साथ ही स्वदेशी विमान वाहक पोतों की आपूर्ति की समय सीमा लगातार आगे बढ़ने से नौसेना की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ेगा।”

सीएजी ने कहा है कि कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड और भारतीय नौसेना के बीच समन्वय नहीं है।

सीएजी ने कहा है, “शिपयार्ड ने संभावना जताई है कि विमानवाहक पोत की आपूर्ति 2023 में हो पाएगी, जबकि सुरक्षा संबंधित मंत्रिमंडलीय समिति ने पोत की आपूर्ति की समय सीमा दिसंबर 2018 स्वीकृत कर रखी है। भारतीय नौसेना और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के बीच समन्वय नहीं है। कोई वास्तविक आपूर्ति तिथि तय करने को लेकर परियोजना की समयसीमा और परियोजना की समीक्षा की समयसीमा पर सहमति के अभाव से यह बात स्पष्ट हो जाती है।”

आवश्यक इस्पात की कमी जैसे कारकों के कारण पोत के ढांचे के निर्माण में विलंब हुआ, जबकि डीजल अल्टरनेटर्स और गीयरबॉक्स जैसे महत्वपूर्ण उपकरणों के देर से मिलने के कारण जहाज की लांचिंग लटक गई।

रपट के मुताबिक, उच्चाधिकार प्राप्त शीर्ष समिति के गठन में विलंब का सीधा-सा अर्थ यह है कि परियोजना की शीर्ष स्तर पर निगरानी नहीं की जा रही थी और संचालन समिति अक्टूबर 2007 से अगस्त 2013 के बीच, यानी परियोजना के प्रथम चरण की लगभग पूरी अवधि के दौरान निष्क्रिय बनी रही।

सीएजी ने कहा है, “न तो मंत्रालय जहाज के निर्माण की भौतिक स्थिति का आकलन कर पाया और न शिपयार्ड ही, क्योंकि मंत्रालय ठेकों में प्रगति रपट के लिए आवश्यक प्रारूपों को शामिल करने में विफल रहा।”

रपट में यह भी कहा गया है कि आईएसी से संचालित किए जाने वाले मिग-29 विमान को इंजन, विमान ढाचे और फ्लाय-बाय-वायर प्रणाली में खामियों के कारण संचालन संबंधी खामियों का सामना करना पड़ेगा।

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