फांसी देने के पहले जल्लाद को ये कहना होता है जरूरी, जानें क्यों…

 

फांसी की सजाभारत में किसी अपराधी को फांसी की सजा सूर्योदय से पहले दी जाती है| अपराधी को फंसी देने का काम जल्लाद का होता है| वैसे तो किसी की जान लेना सबसे घ्रणित काम कहा जाता है| लेकिन जल्लाद का काम कोर्ट के फैसले का पालन करना होता है|

इस तरह का कोई भी काम करने से पहले जल्लाद को भी भगवान का डर सताता है| आखिर वो भी तो इंसान ही है| इसलिए फंसी देने से पहले जल्लाद हमेशा एक बात ज़रूर कहता है कि ‘मुझे माफ कर दिया जाए… हिंदू भाईयों को राम-राम, मुस्लमान भाइयों को सलाम| हम क्या कर सकते हैं हम तो हुकुम के गुलाम’|

फांसी की सजा देना नहीं होता आसान

नियमों के मुताबिक़ फांसी देने के बाद अपराधी को 10 मिनट तक लटके रहने दिया जाता है| इसके बाद डॉक्टरों की एक टीम अपराधी की बॉडी की जांच करती है और मौत की पुष्टि करती है| इसके बाद ही अपराधी को नीचे उतारा जाता है|

फांसी के समय जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटीव मजीस्ट्रेट और जल्लाद का मौजूद रहना जरुरी होती है| अगर इनमें से कोई भी व्यक्ति गैरहाजिर हो तो फांसी नही दी जा सकती|

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