पीएम मोदी को तगड़ा झटका, यूपी चुनाव में खुलकर इस्तेमाल होगा कालाधन

पीएम मोदी को तगड़ा झटकालखनऊ। केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले का असर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी पड़ता नजर आ रहा है। इन चुनावों में होने वाला खर्च घटने के बजाए और बढ़ने जा रहा है। माना जा रहा है कि नोटबंदी चुनावों में कालेधन का प्रवाह नही रोक सकेगी,जिससे पीएम मोदी को तगड़ा झटका लगेगा क्योंकि चुनावों में कालाधन खपाने वालों ने इसके कई तरीके खोज लिए हैं।

पीएम मोदी को तगड़ा झटका

विधानसभा चुनावों के खर्च के संभावित तरीकों पर चुनाव सुधार के लिए काम कर रही संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआऱ) यूपी इलेक्शन वॉच ने बीते दिनों प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की सीटों पर सर्वे कराया। जिसमें ये अहम जानकारियां सामने आई हैं।

एडीआर उत्तर प्रदेश के मुख्य संयोजक संजय सिंह ने बताया कि प्रदेश के 10 मंडलों झांसी, बांदा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, बनारस, गोरखपुर, इलाहाबाद, आगरा और बरेली की 30 विधानसभा सीटों पर एडीआर की रिसर्च टीम के सदस्यों ने संभावित प्रत्याशियों, पार्टी पदाधिकारियों और चुनाव में काम करने वाले कारोबारियों व कार्यकर्ताओं से सवाल पूछे और पहले तैयार प्रश्नावली भरवाई।

70 फीसदी संभावित प्रत्याशी अपनाएंगे पुराना तरीका

सर्वे के मुताबिक नोटबंदी के बाद भी यूपी विधानसभा चुनावों में बीते सालों के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा धन खर्च होगा। सर्वे में संभावित प्रत्याशियों व पार्टी पदाधिकारियों में से 69 फीसदी ने कहा कि विमुद्रीकरण का चुनाव प्रचार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि 65 फीसदी ने माना कि इससे वोटरों की खरीद फरोख्त पर कोई असर नही पड़ेगा। संभावित प्रत्याशियों में से सबसे ज्यादा 70 फीसदी ने कहा कि वो चुनाव जीतने के लिए पुराने तरीकों का ही सहारा लेंगे।

हालांकि नोटबंदी के चलते सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने स्वीकार किया कि इसकी वजह से चुनाव प्रचार में कठिनाई होगी। चुनाव सामाग्री का कारोबार करने वाले 70 फीसदी व्यापारियों का मानना है कि इसके चलते उनके ग्राहक कम हुए हैं। कैशलेस व्यवस्था लागू किए जाने और नंबर एक में भुगतान पर जोर के चलते 60 फीसदी ने माना है कि इससे उनके व्यापार पर कोई असर नही होगा, जबकि 30 फीसदी का कहना है कि थोड़ा बहुत असर होगा।

एडवांस के रूप में पार्टियां दे चुकी हैं काला धन

सर्वे के दौरान यह सामने आया कि बड़ी तादाद में चुनावी पैसा जनधन खातों में जमा कराया गया। संभावित प्रत्याशियों व पार्टियों ने नोटबंदी के साथ ही तमाम कालाधन चुनाव के लिए खर्च के रूप में एडवांस में दे डाला है। संभावित प्रत्याशियों व राजनैतिक दलों की ओर से गाड़ियां, कीमती सामान, साड़ियों और मोबाइल आदि की खरीद भी हो चुकी है।

सर्वे में यह भी सामने आया कि नोटबंदी के कारण नए किस्म के दलाल पैदा हो गए हैं, जो चुनावों के काला धन खपाने में लगे हैं। साथ ही यह भी पता चला कि चुनावों के दौरान मीडिया पर भी अघोषित रुप से खर्च किया जाएगा, जिसमें एक बड़ी हिस्सेदारी सोशल मीडिया की भी होगी।

दो टारगेट ग्रुप में हुआ सर्वे

संजय सिंह के मुताबिक रैंडम तरीके से किए गए इस सर्वे में विधानसभाओं का चयन पूरे प्रदेश को कवर करने के हिसाब से किया गया है। प्रत्येक जिले में कम से कम लक्ष्य समूह (टारगेट ग्रुप) के सात लोगों से बातचीत की गई है। ये टारगेट ग्रुप दो प्रकार के थे। पहला प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से जुड़ा हुआ जैसे— प्रत्याशी, पार्टियों के जिलाध्यक्ष या विधानसभाओं के अध्यक्ष जबकि दूसरा अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ ग्रुप जैसे— साउंड सिस्टम, टेंट व शामियाना हाउस, बैनर होर्डिंग कारोबारी, इवेंट या चुनाव मैनेजमेंट से जुड़े व्यापारी आदि।

इसके अलावा सर्वे में शिक्षाविदों, चुनाव सुधार पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं आदि से भी रायशुमारी भी की गई। सर्वे के दौरान टारगेट ग्रुप के लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मिला गया या फिर उनसे फोन के जरिए सवाल पूंछे गए हैं।

 

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