पानी बना मुसीबत, जलभराव के बीच गुजर-बसर करने को मजबूर ग्रामीण

फर्रुखाबाद में गंगा का जलस्तर रविवार को 10 सेंटीमीटर घटकर 136.90 मीटर पर आ गया है। पर बाढ़ प्रभावित गांवों में लोगों की मुसीबतें कम नहीं हुई हैं। घरों व रास्तों में पानी भरा होने से लोगों के पैरों की खाल खराब होने लगी है। रामगंगा का जलस्तर बढ़ कर 135.25 मीटर पर पहुंच गया है। किनारे गांव में कटान तेज हो गया है। गंगानदी के जलस्तर से निचले इलाके में बसे ग्रामीण घबराए हुए हैं। आंखों से रात की नींद छिन गई है।निचले इलाकों में गंगानदी का जो पानी भर गया है उससे लोग परेशान हो रहे हैं। बड़ी संख्या मे ग्रामीण जलभराव के बीच निकल रहे हैं। माखन नगला रोड पर पानी चल रहा है। ऐसी ही स्थिति जटपुरा कैलियाई गांव की है।

पिछले तीन दिन से एक लाख क्यूसेक से कम पानी छोड़े जाने से रविवार को गंगा के जलस्तर में गिरावट आ गई है। फिर भी गंगा का जलस्तर चेतावनी बिंदु से 30 सेंटीमीटर ऊपर बह रहा है। खतरे का निशान 137.10 मीटर पर है। नरौरा बांध से 46 हजार 908 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है।गांव अंबरपुर, करनपुर घाट, रामपुर, जोगराजपुर, लायकपुर, अमीराबाद, आशा की मड़ैया, हरसिंहपुर कायस्थ, तीसराम की मड़ैया और अंबरपुर की मड़ैया में घरों पानी भरा है। इससे वहां के लोगों के पैरों की खाल खराब होने लगी है। बदायूं मार्ग पर अभी पानी बह रहा है। इससे वहां से गुजरने वाले वाहन चालकों को परेशानी हो रही है। अभी तक तहसील प्रशासन ने किसी भी बाढ़ प्रभावित गांव में मदद नहीं पहुंचाई है।

जलभराव के बीच ग्रामीण निकलने को मजबूर हैं। कहीं नाव से आवागमन हो रहा है तो कहीं जान जोखिम में डालकर लोग निकल रहे हैं। ग्रामीण घबराए हुए हैं। उनकी समझ में नहीं आ पा रहा है कि किस तरह से इस संकट से उन्हें छुटकारा मिलेगा। रामपुर जोगराजपुर गांव पूरी तरह से बाढ़ के पानी से घिरा हुआ है। स्थिति यह हो गयी है कि यहां लोग नाव के सहारे इधर उधर जा रहे हैं। अंबरपुर की मड़ैया के लोगों की सबसे ज्यादा स्थिति खराब है। नगला दुर्ग, सुंदरपुर, हरसिंहपुर कायस्थ मेे भी लोग दिक्कतों के बीच रहने को मजबूर हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस बार जिस तरह का जलस्तर बढ़ा और फिर कम हुआ उससे तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रशासन ने भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई। ग्रामीणो का कहना है कि अभी तक कोई अधिकारी इस क्षेत्र का दौरा करने नहीं आया हैऔर न ही कोई मदद नहीं की गयी है। बस इतना जरूर हुआ कि मांंग के अनुरूप नाव जरूर मिली। ग्रामीण परेशान हो रहे हैं। सुरक्षित ठिकाना भी तलाश रहे हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत निचले क्षेत्रों में ही हो रही है |

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