अगर दिख रहे हैं आपके बच्चे मे ये लक्षण, तो हो जाइए सावधान

डिप्रेशनआज के समय में युवा और बुज़ुर्ग ही नहीं, बच्चे भी तनाव और अवसाद यानी डिप्रेशन की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। इसे हल्‍के में नहीं लेना चाहिए, यह हमारे लिए एक चेतावनी के रूप में है। हद से व्‍यस्‍थ जीवन, काम का प्रेशर, परीक्षा, पढ़ाई और बढ़ती प्रतिस्‍पर्धा की चपेट से अब बच्‍चे भी अछूते नहीं रह गए हैं।

मनोचिकित्सकों की मानें, तो अवसाद की बीमारी किसी को भी हो सकती है। सायकोलॉजी की प्रो़फेसर डॉ. विद्या शेट्टी के अनुसार, अवसाद के लिए मुख्य रूप से बदलती जीवनशैली, अकेलापन, घर का बिगड़ा हुआ माहौल, माता-पिता की हद से ज्‍यादा उम्‍मीदों पर खरा न उतरने का डर, परीक्षा में दूसरे बच्‍चों से किए जाने वाली तुलना, परीक्ष में फेल हो जाना।

ये सभी ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जो बच्चों के दिमाग़ में घर कर जाएं, तो उनकी जान तक की दुश्मन बन जाती हैं। हालांकि अवसाद का सही इलाज मुमकिन है, बशर्ते समय रहते इलाज शुरू कर दिया जाए।

सायन हॉस्पिटल, मुंबई के सायकोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. निलेश शाह कहते हैं, “डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और यह किसी को भी हो सकती है। इंसान के दिमाग़ में न्यूरोटर्मिक नाम का केमिकल बनता है, दिमाग़ में इसकी मात्रा कम होने के कारण डिप्रेशन की बीमारी हो जाती है। कुछ ऐसे लक्षण भी हैं, जिनसे शुरुआती दौर में ही आप अपने बच्चे के दिमाग़ में पनप रहे डिप्रेशन को पहचान सकते हैं.”

डिप्रेशन के लक्षण

आपका हंसता-खेलता बच्चा अचानक से अलग बर्ताव करने लगे।

बहुत ही चंचल स्वभाव का बच्चा शांत रहने लगे।

वो चिड़चिड़ा हो जाए या छोटी से छोटी बात पर उसे ग़ुस्सा आने लगे या वह रिएक्ट करने लगे।

खेल-कूद से कभी न थकने वाला बच्चा बाहर जाकर दोस्तों के साथ खेलने से जी चुराने लगे।

जो बच्चा तन्हाई में एक पल न बिताता हो, उसे अचानक अकेले रहने का मन करने लगे।

भाई-बहन से हमेशा मिल-जुलकर रहने वाला बच्चा उनसे दूर होने लगे।

पैरेंट्स या रिश्तेदारों से बातचीत करने में घबराए या बात ही न करना चाहे।

दिन में काफ़ी समय टीवी के सामने बैठ अपने पसंदीदा कार्टून को देखना या वीडियो गेम को अपने से भी अधिक प्यार करनेवाला बच्चा अचानक से इन चीज़ों की तरफ़ देखे भी न।

बच्चा बिना किसी ख़ास वजह के स्कूल जाने से बार-बार इनकार करने लगे और ज़बरदस्ती स्कूल भेजने पर कोई न कोई बीमारी का बहाना बना दे।

भूख लगने पर भी खाने-पीने का उसका मन नहीं करे।

भरपूर नींद न ले पाए। छोटी उम्र में जब बच्चे 8 से 10 घंटे की नींद पूरी करते हों, तब आपके बच्चे को नींद न आने जैसी शिकायत रहने लगे।

डिप्रेशन का इलाज

डॉ. निलेश शाह का कहना है कि जैसे ही आपको अपने बच्चे में अवसाद के लक्षण दिखाई दें, उसे बिल्कुल नज़रअंदाज न करें। उसे मनोचिकित्सक या मेंटल हेल्थ सेंटर लेकर जाएं, ताकि समय पर बच्चे का सही इलाज शुरू किया जा सके। अकसर इसका सही इलाज न होने पर पीड़ित व्‍यक्ति खुदखुशी जैसे कदम उठा लेता है। इसका इलाज संभव है। इसके इलाज के लिए दवाइयां और काउंसलिंग दोनों की ही ज़रूरत होती है। बच्चे के दिमाग़ में चल रहे नकारात्मक विचार का कारण जानकर उसे सायको थेरेपी से या उसके लिए उपयुक्त उपचार से ठीक किया जाता है।

 

अवसाद की चपेट से बचाने के लिए बच्चे की मदद करें

कम उम्र के हो या टीनएज, उन्हें अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण रखना सिखाएं।

ग़ुस्सा आने पर उसे 1 से 10 तक उल्टी गिनती गिनने की सलाह दें। यह काफ़ी कारगर उपाय है.

छोटी-छोटी चीज़ों या बातों पर कैसे रिएक्ट किया जाए, बच्चे को यह सिखाकर आप इस बीमारी से उसे दूर रखने में काफी हद तक मदद कर सकते हैं।

जितना हो सके अपने बच्चे से उसकी परेशानी के बारे में बात करें, न कि उसकी परेशानी का कारण बने।

इसके अलावा गाने सुनकर ग़ुस्से या उदासी को कम किया जा सकता है, जिसे म्यूज़िक थेरेपी भी कहते हैं।

काम में व्यस्त रखें

ध्‍यान बांटने के लिए उसको काम में व्‍यस्‍त रखें। खुद का कमरा ठीक करना, होमवर्क करना या शॉवर लेने जैसा काम करके वह अपने आपको व्यस्त रख सकता है। यदि आपको ज़रा भी महसूस हो कि आपका बच्चा अवसाद का शिकार हो रहा है, तो आप उसे चद्दर से मुंह ढंककर सोने की इजाज़त न दें। इससे हालात और भी गंभीर हो सकती है।

ज़िम्मेदारियों का एहसास कराएं

बच्चों को उनकी ज़िम्मेदारियों का एहसास कराना ठीक उतना ही ज़रूरी है, जितना कि उन्हें चलना-बोलना सिखाना। रोज़ के काम जैसे कि स्कूल का होमवर्क करने में उसकी मदद करें। उसे रोज़ नई-नई चीज़ें सिखाएं और उसके साथ फ्रेंडली व्‍यवहार करें।

क्यों ज़रूरी है शांत कमरा?

बच्चे को शोर-शराबेवाली वाली जगह न रहने दें, उससे भी वह और चिड़चिड़ा बना सकता है। आजकल कई स्कूलों में ‘क्वाइट रूम’ बनाया जाता है, जहां बच्चा आराम से बैठकर अपने दिलो-दिमाग़ को शांत कर सके। शांत कमरे में बैठकर अपने बच्चे से उसके ख़राब मूड या परेशानी की वजह जानने की कोशिश करें।

मूड पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है

एसा भी हो सकता है कि आपका बच्‍चा बहुत मूडी हो। तो ये आप पर निर्भर करता है कि आप उसें कैसे समझाते हैं। आप उसे समझा सकते हैं कि वह अपने मन के मुताबिक काम कर सकता है मगर अपनी जिम्‍मेदारियों से पीछा नहीं छुड़ा सकता।

दुखी होना बुरा नहीं है

अगर हम खुश होते है तो कभी न कभी दुखी भी हो सकते हैं। ये हमारे जीवन का हिस्‍सा है इसे अपनी किसमत या जिंदगी समझ लेना गलत है। हालांकि अधिक दुखी होने का एहसास भी डिप्रेशन का हिस्सा हो सकता है। बच्चों को यह पता होना चाहिए कि कभी कोई काम उनके मुताबिक न हो, तो इसका मतलब यह नहीं कि सब खत्‍म हो गया। बच्चों को अपनी भावनाओं पर काबू करना पैरेंट्स ही सिखा सकते हैं। उन्‍हें उनके बुरे समय में सहारा देकर, उनसे बातें करें. उन्हें समझाएं कि अलग-अलग हालात को किस प्रकार सम्‍भाला जाए।

नेशनल रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष (2006 से 2010 तक) विद्यार्थियों में आत्महत्या 26% बढ़ गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 में देश में रोज़ाना 20 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। मनोचिकित्सकों और शिक्षकों ने काफ़ी हद तक आत्महत्या का कारण मेंटल हेल्थ व डिप्रेशन को बताया है।

LIVE TV