कोर्ट के आदेश से हिली अखिलेश की कुर्सी, अब सीबीआई बेनकाब करेगी जवाहर बाग कांड से जुड़े चेहरे

जवाहर बाग कांडमथुरा। यहां जवाहर बाग कांड के अंगारे आज भी धधक रहे हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय और शहीद एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी समेत नौ लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं। इससे यूपी के सीएम अखिलेश यादव के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता दें घटना के पीछे कई बड़े नेताओं का हाथ होने की आशंका जताई जा रही थी। अब कोर्ट के आदेश के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस मामले से जुड़े कई नेता और अफसर जल्द ही बेनकाब होंगे।

जवाहर बाग कांड  

मथुरा के जवाहरबाग में दो जून, 2016 को भड़की हिंसा के मामले में चीफ जस्टिस डीबी भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की डिवीज़न बेंच ने 20 फरवरी को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था। इस पर अब सीबीआई जांच के आदेश दिए गए हैं। साथ ही जांच की रिपोर्ट दो महीने में पेश करने के निर्देश दी हैं।

मथुरा के बीचोंबीच जिलाधिकारी कार्यालय की नाक के नीचे रामवृक्ष यादव का गैंग सक्रिय था। हथियारों के साथ एक बड़ी फौज रामवृक्ष यादव ने तैयार की थी।

इस फौज के रहने के लिए जवाहर बाग पर कब्जा किया हुआ था। 500 एकड़ के जवाहर बाग में फलदार वृक्ष थे। सार्वजनिक जवाहर बाग को खाली कराने के लिए न्यायालय के आदेश थे। पुलिस प्रशासन पर दबाव बना।

2 जून, 2016 की शाम को एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी, एसओ संतोष यादव ने अवैध कब्जा खाली कराने के लिए यहां पर कार्रवाई की। इस कार्रवाई में रामवृक्ष यादव की सेना हथियारों के साथ पुलिस बल पर टूट पड़ी।

रामवृक्ष के लोगों ने एसपी सिटी और एसओ की हत्या कर दी। इसके बाद मामला उग्र होता चला गया। पुलिस ने ठान ली थी, अब रामवृक्ष के आतंक से इस जगह को मुक्त कराना है। इस पूरे मामले में दो पुलिस अधिकारी सहित 21 लोग मारे गए थे।

मथुरा के खूनी संग्राम में शहीद हुए एसपी सिटी और एसओ की मौत का जिम्मेदार कौन है, इसे लेकर सवाल भी उठे।

डीएम की कोठी से महज 150 मीटर दूर दो साल से डेरा डाले हुए कथित सत्याग्रहियों के बारे में अधिकारी असल जानकारी ही नहीं जुटा पाए।

एसएसपी ने अधीनस्थ को वहां भेजने से पहले एलआईयू रिपोर्ट का अवलोकन करना क्यों उचित नहीं समझा। इन सवालों ने पुलिस के बड़े अधिकारियों पर भी सवाल खड़े कर दिए थे।

चर्चा थी कि जवाहरबाग कांड के मुख्य विलेन रामवृक्ष यादव का कनेक्शन बड़े बड़े नेताओं के साथ था। सत्ताधारी दल के नेताओं का नाम रामवृक्ष यादव के साथ जोड़ा गया। जमकर बवाल हुआ। इस मामले में भाजपा नेताओं ने मांग की थी कि निष्पक्ष जांच की जाए।

बता दें याचिका में राज्य सरकार पर आरोपियों को बचाने का आरोप लगाया गया है। अपनी बात में याचिकाकर्ताओं ने यह सवाल भी उठाया कि हिंसा के इतने बड़े मामले में सरकार ने एक भी व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। महज स्थानीय डीएम और एसपी का तबादला कर इसे ठंढे बस्ते में डाल दिया गया था।

याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था  की मामले के मुख्य आरोपी रामवृक्ष के खिलाफ 1 जनवरी 2014 से  अबतक कितनी शिकायत दर्ज हुयी? कितने एफआईआर दर्ज हुये? कितनी चार्जशीट फाइल हुयी?

इसके साथ ही कोर्ट ने पूछा है कि जवाहर बाग़ रुकने के लिए जब प्रशासन द्वारा दो दिनों के लिए दिया गया था, तो ये लोग इतने दिनों तक कैसे रुके रहे ।

कोर्ट ने यह भी पूछा कि मामले में जनवरी 2014 से अबतक कौन-कौन डीएम और एसपी मथुरा मे पोस्टेड थे। साथ ही पार्क को खाली कराने के लिये क्या-क्या कार्यवाही की  गयी थी।

इन सवालों के जवाब मिलने के बाद कोर्ट कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हुई और आज मामले में सीबीआई जांच के आदेश जारी कर दिए गए।

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