जलियांवाला कांड: 100 साल लेकिन आज भी ज़िन्दा हैं वहां दरिंदगी के निशान!

अमृतसर के जलियांवाला बाग के नरसंहार कांड के आज 100 साल पूरे हो गए हैं| ये वही दिन था जब हजारों मासूमों की जान एक झटके में चली गई थी|

जलियांवाला बाग नरसंहार कांड बैसाखी के (13 अप्रैल 1919) दिन हुआ था| पंजाब समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग अमृतसर पहुंचे थे| वहीं इस दिन दो लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी और रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी|

बैसाखी का दिन था ऐसे में लोग गोल्डन टेंपल में दर्शन के बाद धीरे-धीरे लोग जलियांवाला बाग में जुटने लगे| कुछ वक्त में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी|

ब्रिगेडियर जनरल डायर को मालूम चला कि बाग में कोई मीटिंग हो रही है| ऐसे में गुस्साए जनरल डायर जलियांवाला बाग की तरफ पुलिस के साथ बढ़ चला|

जलियांवाला बाग के गेट का वो सकरा रास्ता पुलिस के सिपाहियों से भर चुका था| जनरल डायर ने बिना किसी वॉर्निंग के सिर्फ एक शब्द “FIRE” कहा और एक झटके में हजारों जिंदगियां खत्म हो गई|

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जब कुएं में कूदे लोग-
गोलियों में बचने के लिए लोग बाग में मौजूद कुएं में भी कूदे| बताया जाता है कि कुएं से 120 लाशें निकाली गई थी| जिसमें बच्चे, बुढ़े, महिलाएं, पुरुष शामिल थे|

बता दें, कुछ लोगों ने दीवारों पर चढ़कर बाग से बचकर निकलने की कोशिश की थी, लेकिन वह सभी गोलियों से बच नहीं सके| भले ही आज हत्याकांड को 100 साल पूरे गए हो| वहीं दीवारों दिखाई देने गोलियों के निशान दरिंदगी की कहानी बयां कर रहे हैं|

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