अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन पर केन्द्र को लगा झटका
गुवाहाटी। अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन पर केन्द्र सरकार को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए राष्ट्रपति शासन रद कर कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला पूरी तरह गलत था। कोर्ट के इस फैसले के बाद पूर्व सीएम नबाम तुकी ने कहा कि हम लोगों की जीत हुई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम घडी की सुंइयां वापस कर सकते हैं। कोर्ट ने राज्य में 15 दिसंबर 2015 वाली स्थिति बरकार रखने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्वनर को विधानसभा बुलाने का अधिकार नहीं था। यह गैरकानूनी था। 15 दिसंबर 2015 के बाद से सारे एक्शन रद्द कर दिए गए हैं। हालांकि जस्टिस जे एस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस मदन लोकुर ने अलग अलग फैसले सुनाए। सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह स्वत संज्ञान लेकर विधानसभा का सत्र बुला सकता है या नहीं।
यूं लगा था राष्ट्रपति शासन
अरुणाचल के स्पीकर नबम रेबिया ने सुप्रीम कोर्ट में ईटानगर हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें 9 दिसंबर को राज्यपाल जेपी राजखोआ के विधानसभा के सत्र को एक महीने पहले ही 16 दिसंबर को ही बुलाने का फैसले को सही ठहराया था। इसके बाद 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
अरुणाचल प्रदेश में सरकार पर असमंजस
कांग्रेस की नबम तुकी वाली सरकार परेशानी में आ गई, क्योंकि 21 विधायक बागी हो गए। इससे कांग्रेस के 47 में से 26 विधायक रह गए। सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी को दूसरी सरकार बनने से रोकने की तुकी की याचिका नामंजूर कर दी। 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई के दौरान ही बागी हुए कालीखो ने 20 बागी विधायकों और 11 बीजेपी विधायकों के साथ मुख्यमंत्री की शपथ ले ली और सरकार बना ली।
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उत्तराखण्ड के बाद दूसरा झटका
इससे पहले केन्द्र की मोदी सरकार को उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिशों पर मुंह की खानी पड़ी थी। यहां भी कांग्रेस के कई विधायक बागी निकले लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की सरकार को बहाल कर दिया। बाद में हुए शक्ति परीक्षण में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की।