अखिलेश यादव को टीस, मजबूरी में कांग्रेस से गठबंधन, पारिवारिक झगड़े से बन गए थे ऐसे हालात
इलाहाबाद। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि अगर परिवार में कलह नहीं होती तो कई राजनीतिक फैसले नहीं लेने पड़ते, जिनमें मजबूरी में कांग्रेस से गठबंधन भी शामिल हो सकता था। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन को मजबूरी बताया है। परिवार में झगड़े की वजह से ऐसे हालात बन गए थे कि उन्हें कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ा। एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने कहा, अगर परिवार में कलह नहीं होती तो कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होता। कांग्रेस के साथ गठबंधन विशेष समय और परिस्थितियों में करना पड़ा है। झगड़ा नहीं होता तो कई राजनीतिक फैसले नहीं लेने पड़ते, इसमें गठबंधन भी शामिल हो सकता था। लेकिन ऐसे हालात बन गए थे कि कांग्रेस के साथ हमें आना ही पड़ा। हमें उत्तर प्रदेश के लोगों को यह संदेश देना था कि विकासशील सरकार वापस लौट सकती है। जब दो युवा नेता साथ आए तो लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं।
साथ ही अखिलेश यादव ने कहा कि हालांकि, हम कांग्रेस के साथ गठबंधन करके खुश हैं, गठबंधन के नतीजे अच्छे रहेंगे। उन्होंने साथ ही इंटरव्यू में बताया, ‘जब भी कांग्रेस कमजोर पड़ी है, तभी समजावादी उनके करीब मिले हैं। कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के कई बार मतभेद भी हुए हैं। लेकिन समाजवादी लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि वे सभी कांग्रेस के ही प्रोडेक्ट हैं। उस समय कांग्रेस एकमात्र विपक्षी पार्टी हुआ करती थी, अगर कोई पार्टी सत्ता में है तो उसे उसी के खिलाफ लड़ना होता था। अब देश की धर्म निरपेक्षता को बचाने के लिए एक राजनीतिक एकजुटता की जरूरत है।’
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव साथ में मिलकर लड़ रही हैं। 403 विधानसभा सीटों में से 298 पर समाजवादी पार्टी और 105 पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। बता दें, यूपी विधानसभा चुनाव से पहले यादव परिवार में काफी घमासान हुआ था। एक खेमा अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का था, वहीं दूसरे खेमे में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव थे। जो फैसला अखिलेश यादव लेते, उसे मुलायम सिंह यादव का खेमा निरस्त कर देता और जो फैसला मुलायम सिंह लेते, उसे अखिलेश यादव खेमा निरस्त कर देता। अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया था, इसके बाद अखिलेश ने खुद यह पद संभाला। इतना ही नहीं, बल्कि इसके बाद पार्टी के चुनावी निशान को लेकर भी काफी घमासान मचा था। दोनों खेमे ने चुनाव आयोग पहुंचकर पार्टी के चुनावी निशान पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश की थी। लेकिन आखिरकार अखिलेश खेमे को पार्टी का निशान साइकिल मिला।