महाराष्ट्र सरकार ने निकाला सूखे का नया तोड़, अब करवायेगी कृत्रिम बारिश
भीषण सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा, विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र में कृत्रिम वर्षा कराई जाएगी। मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में एरियल क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल कर कृत्रिम बारिश कराने की मंजूरी दी गई। इसके लिए 30 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके साथ ही, महाराष्ट्र सरकार ने विदर्भ और मराठवाड़ा के उद्योगों के लिए 2019 से 2014 तक बिजली शुल्क माफ करने का एलान किया है।
विदेशों में एरियल क्लाउड सीडिंग के जरिए 28 से 43 प्रतिशत कृत्रिम मानसून बनाने में सफलता मिलती है। इसी तर्ज पर राज्य में सूखाग्रस्त मराठवाड़ा, विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र में कृतिम बारिश के जरिए सूखे से निपटने की तैयारी है।
इसके लिए औरंगाबाद में सी बैंड डॉपलर रडार और विमान तैयार है। सूबे में पहली बार साल 2003 में एरिएल क्लाउड सीडिंग तकनीक के जरिए 22 तालुका में बारिश कराई गई थी।
इस पर तब साढ़े पांच करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसके लिए अमेरिकी कंपनी की मदद ली गई थी और यह प्रयोग सफल भी हुआ था। उसके बाद 2015 में नासिक में कृतिम बारिश कराई गई थी जो, तकनीकी खामियों के चलते असफल रही। उसके बाद 2017 में भी कृत्रिम बारिश कराई गयी थी।
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26 जलाशयों में जल भंडारण शून्य
महाराष्ट्र के 26 जलाशयों में जल भंडारण शून्य हो गया है। इस संबंध ने राज्य सरकार ने पिछले दिनों एक आंकड़ा जारी किया था जिसमें कहा गया था कि 18 मई तक राज्य के 26 जलाशयों में जल भंडारण लगभग खत्म हो चुका है। इससे पहले सरकार ने पिछले अक्तूबर महीने में ही सूबे की 151 तालुका और 260 मंडलों में सूखे की घोषणा की थी।
कृत्रिम बारिश का इतिहास
पहली बार 1940 में अमेरिका में इस तकनीक का शुरू किया गया था और वर्तमान में करीब 60 देशों में इससे बारिश कराने के प्रयोग हो रहे हैं। अमेरिकी कंपनी वेदर मॉडिफिकेशन एनकॉर्पोरेशन कई देशों में क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट चला रही है। कृत्रिम बारिश की एक नई तकनीक का प्रयोग 1990 में दक्षिण अफ्रीका में किया गया था। वहां पर हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग ईजाद किया गया जिसमें बादलों में सोडियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे रसायनों का छिड़काव करके बारिश कराई जाती है।