सर्दियों में सोआ खाने के अनेक फायदे
सोआ एक ऐसा पौधा है जिसका लंबा इतिहास एक बेहतरीन मसाले के रूप में है। लेकिन इसका इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता रहा है।
मध्य युग के दौरान, लोगों ने जादू टोना और जादू-टोने से बचाव के लिए सोआ का इस्तेमाल किया। हाल ही में, लोगों ने सोआ के बीज और पौधे के कुछ हिस्सों का उपयोग दवा के रूप में करने लगे।
भारतीय घरों में सोआ का उपयोग सब्जी के रूप में भी किया जाता है। सर्दियों में सोआ की सब्जी बहुत फायदेमंद होती है। यह कई रोगों का खात्मा करने में मददगार है।
सोआ का उपयोग पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है, जिसमें भूख में कमी, आंतों की गैस (पेट फूलना), यकृत की समस्याएं और पित्ताशय की शिकायत शामिल हैं।
यह गुर्दे की बीमारी और दर्दनाक या कठिन पेशाब सहित मूत्र पथ के विकारों के लिए भी उपयोग किया जाता है। सोआ के अन्य उपयोगों की बात करें तो यह बुखार और सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस, बवासीर, संक्रमण, ऐंठन, तंत्रिका दर्द, जननांग अल्सर, मासिक धर्म में ऐंठन, और नींद संबंधी विकारों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
सोआ खाने के फायदे
सोआ में कैलारी की कम मात्रा होने के कारण यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम रखता है। इस जड़ी बूटी में कई तरह के एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन जैसे पिरीडॉक्सिन और नियासिन, साथ ही आवश्यक फाइबर भी होते है जो रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
सोआ की पत्तियां और बीजों में लाइमोनीन और युजीनॉल जैसे आवश्यक तेल पाए जाते है। युजीनॉल, एंटीसेप्टिक और एनेस्थेटिक (संवेदनाहारी गुणों) के कारण चिकित्सीय लाभ प्रदान करता है। यह आवश्यक तेल रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में सहायक होता है।
इस तरह से यह डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए लाभकारी होता है।
जड़ी बूटी के बीज से निकाले गये तेल में वातहर, पाचन, शामक और कीटाणुनाशक गुण होते है। इसके अलावा सोया राइबोफ्लेविन, फोलिक एसिड, बीटा कैरोटीन, विटामिन ए, नियासिन और विटामिन सी से भरपूर होता है। यह सब शरीर के मेटाबोलिज्म के लिए आवश्यक होता हैं।
कैल्शियम की सही मात्रा हड्डियों को मजबूत बनाने और हड्डी नुकसान को रोकने के लिए बहुत अच्छा उपाय है। और सोआ कैल्शियम का बहुत अच्छा स्रोत है।
ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या भी कैल्शियम की कमी से होती है। नियमित आधार पर सोआ का सेवन करने से ऑस्टियोपोरोसिस को रोका जा सकता है। सोआ में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण आंतरिक और बाह्य संक्रमण से लड़ने में हमारी मदद करते है।
प्राचीन संस्कृति में घाव और जलने पर होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए सोआ के बीजों को लगाया जाता था।