भारत माता की जय बोलना मुस्लिमों के लिए जायज नहीं: दारुल उलूम

एजेन्सी/fatwa_landscape_1459465003भारत माता की जय बोलने से इंकार करने वाले ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी को लेकर सड़क से संसद तक सियासी बवाल के बीच इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम के मुफ्तियों का कहना है कि हम इस वतन को अपना माबूद (भगवान) नहीं समझते।

इसलिए किसी मुसलमान के लिए ऐसा नारा लगाना जायज नहीं है। गौरतलब है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी कह चुके हैं कि भारत माता की जय बोलने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता।

पिछले दिनों भारत माता की जय बोलने को लेकर ओवैसी का विवादास्पद बयान आने के बाद दारुल उलूम के मुफ्तियों से सैकड़ों सवाल पूछे जा रहे थे। दो दिन पूर्व दारुल इफ्ता में हुई आठ सदस्यीय मुफ्तियों की खंडपीठ की बैठक में इस सवाल पर मंथन किया गया।

हवाला नंबर 545 (ब) में मुफ्तियों ने जवाब दिया कि कई वर्ष पूर्व वंदेमातरम का मसला उठा था। इस गीत को स्कूलों में हिंदू-मुस्लिम सबके लिए पढ़ना लाजिम किया गया था। अब भारत माता की जय का नारा हर मुसलमान के लिए लाजिम किया जा रहा है।

यह दोनों मसले एक ही जैसे हैं। वंदेमातरम के बारे में यहां से लिखा गया था कि हिंदुस्तान बिलाशुबा हमारा वतन है। हम और हमारे पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं। यह हमारा मादरे वतन है, हम इससे मोहब्बत करते हैं लेकिन हम इस वतन को अपना माबूद (भगवान) नहीं समझते।मुसलमान खुदा के एक होने का अकीदा (यकीन) रखते हैं। इसलिए वो खुदा के अलावा किसी और की परसतिश (पूजा) नहीं कर सकते। इसलिए मुसलमानों को इस गीत से मुसतस्ना (अलग) रखा जाए। अब भारत माता की जय का नारा लगाने पर मजबूर किया जा रहा है। दरअसल भारत माता अहले हनूद (एक तबके) के अकीदे (यकीन) के मुताबिक एक देवी है।

जिसकी वो पूजा करते हैं। भारत माता देवी को यह लोग हिंदुस्तान की मालिक व मुख्तार समझते हैं। यह अकीदा बिलाशुबा शिरकीया (शरीक करने वाला) अकीदा है। इस्लाम के मानने वाले मुसलमान कभी वहदानियत (तन्हा) के खिलाफ नारे से समझौता नहीं कर सकते।

भारतीय संविधान के मुताबिक हिंदुस्तान के हर शहरी को मजहबी आजादी दी गई है। किसी फिरकापरस्त को यह हक हासिल नहीं कि वो कानून के खिलाफ कोई काम करे और दूसरों को गैर कानूनी काम करने पर मजबूर करे। भारत माता की जय कहने वालों के नजदीक इसके मफहूम (मायने) में वतन की परसतिश (पूजा) शामिल हैं। इसलिए किसी मुसलमान के लिए ऐसा नारा लगाना जायज नहीं।

फतवे पर मुफ्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी, मुफ्ती महमूद हसन बुलंदशहरी, मुफ्ती जैनुल इस्लाम कासमी, मुफ्ती फखरुल इस्लाम कासमी, मुफ्ती वकार अली, मुफ्ती असदुल्ला, मुफ्ती नौमान सीतापुरी और मुफ्ती मुसअब के हस्ताक्षर हैं।

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