बेकाबू और बुरे हालातों के बीच क्या अलग हो जायेगा पाकिस्तान से बलूचिस्तान ?

पाकिस्तान भले ही बलूचिस्तान प्रांत में शांति और स्थिरता के दावे करता हो लेकिन यहां से लगातार हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं. बलूचिस्तान के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और पाकिस्तान से आजादी की मांग तेज होती जा रही है.

बलूच आंदोलनकारियों का कहना है कि सेना द्वारा स्थानीय लोगों के अपहरण, प्रताड़ना और हत्या की वजह से लोगों के मन में पाकिस्तान विरोधी भावनाएं और प्रबल हो गई हैं.

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है. प्राकृतिक गैस भंडार और खनिजों के मामले में भी यह बेहद समृद्ध है. बलूचिस्तान 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का भी सबसे मुख्य बिंदु है. इस इलाके में ग्वादर बंदरगाह के साथ-साथ कई सड़कों का जाल भी बिछाया जा रहा है.

लेकिन पिछले कई वर्षों से बलूच अलगाववादियों, पाकिस्तान तालिबान और आईएसआईएस के स्थानीय समूह लगातार यहां हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. सरकारी आंकड़े के मुताबिक, क्वेटा की अल्पसंख्यक शिया आबादी को इन हमलों में निशाना बनाया जा रहा है जिसमें 509 लोगों की जानें जा चुकी हैं.

बलूचिस्तान में पश्तूनों के गढ़ उत्तरी इलाके में सुरक्षा बलों पर लगातार हमले हो रहे हैं. यहां पर कई धार्मिक समूहों पर प्रतिबंध की रिपोर्ट्स भी सामने आई हैं.

सोमवार को पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम प्रांत बलूचिस्तान में एक मस्जिद के पास हुए एक आत्मघाती हमले में 4 पुलिसकर्मी मारे गए जबकि कई घायल हो गए. पिछले 3 दिनों के भीतर यह दूसरा हमला था.

इस हमले में बलूचिस्तान की प्रांतीय राजधानी क्वेटा के सैटेलाइट टाउन में दो पुलिस वाहनों को निशाना बनाया गया. बलूच अलगाववादी समूह बलूच लिबरेशन आर्मी ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है.

इससे पहले, 12 अप्रैल को हुए हमले में क्वेटा के हजारगंजी बाजार में एक आत्मघाती हमले में हजारा समुदाय को निशाना बनाया गया जिसमें करीब 20 लोग मारे गए. मरने वालों में बलूच और पश्तून भी थे.

इस हमले के बाद एक बार फिर हजारा समुदाय के लोग विरोध-प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर आए और सरकार के ‘नैशनल ऐक्शन प्लान’ (NAP) को लागू करने के आश्वासन के बाद ही विरोध-प्रदर्शन बंद हुए.

बता दें कि 2014 में हुए पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान की सरकार ने आतंकवाद और चरमपंथ से लड़ने के लिए NAP का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया था.

विडंबना ये थी कि जिस दिन सरकार ने यह वादा किया, उसी दिन चमन में एक ब्लास्ट में दो लोगों की जानें चली गईं और करीब 10 लोग घायल हो गए.

 

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18 अप्रैल को 15-20 चरमपंथियों ने मिलकर माकरान कोस्टल हाईवे पर एक बस को रोककर 14 यात्रियों को उतारकर एक-एक को मौत के घाट उतार दिया था.

यह हमला ग्वादर जिले के समुद्री तट पर बसे कस्बे ओरमारा में हुआ था. सशस्त्र बलूच अलगाववादी समूह के सहयोगी बलूच राजाजी आजोई सानगर (BRAS) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी.

BRAS के प्रवक्ता ने कहा था, जिन लोगों को हमले में निशाना बनाया गया, उनके पास पाकिस्तान नेवी और कोस्ट गार्ड्स की आईडी थी. उनकी पहचान किए जाने के बाद ही उन्हें मारा गया. हालांकि, सरकार और सुरक्षा अधिकारियों ने इस हमले की लिखित में पुष्टि नहीं की.

बलूचिस्तान में बढ़ते संघर्ष में चीन के सीपीईसी परियोजना की भी भूमिका है. बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहे संगठन लंबे समय से स्थानीय संसाधनों पर अपने हक की मांग करते रहे हैं.

विश्लेषकों का कहना है कि बलूचिस्तान में चीनी निवेश की वजह से अलगाववादियों के भीतर राष्ट्रवाद की भावना और भी गहरी हो गई है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान का चीनी निवेश की रक्षा करने का संकल्प और सेना की मौजूदगी बढ़ाने की वजह से बलूचों का प्रतिरोध मजबूत होता जा रहा है.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, BRAS ने बलूच अलगाववादियों के साथ एक होने का संकल्प लिया है ताकि चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत परियोजनाओं को निशाना बनाया जा सके.

पिछले वर्षों में सीपीईसी को निशाना बनाते हुए बलूच अलगाववादियों ने कई हमलों को अंजाम दिया है. सीपीईसी की घोषणा के वक्त बलूचों से सहमति नहीं ली गई थी. इसके अलावा बलूच उस आने वाले खतरे को महसूस कर रहे हैं जो सीपीईसी के बाद से बाहरी लोगों के पहुंचने से होने वाला है.

ग्वादर में अधिकतर लोगों ने बलूचिस्तान से बाहर से आए कई निवेशकों को अपनी जमीनें बेच दी हैं. बलूचों को डर है कि धीरे-धीरे इलाके की जनसंख्या के स्वरूप में पूरी तरह से बदलाव हो जाएगा और बाहरी उन पर हावी हो जाएंगे.

बलूचिस्तान वैसे तो सहिष्णु और बहुसांस्कृतिक समाज रहा है लेकिन अब इसके भीतर कई समुदायों में संघर्ष छिड़ चुका है. बलूचिस्तान में हालात शिया समुदाय हजारा के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक हो गए हैं. मारीदाबाद और हजारा कस्बे में बसे हजारा समुदाय के लोग घरों से बाहर जान गंवाने का डर लेकर निकलते हैं. उनकी जिंदगी हमेशा दांव पर लगी रहती है.

पंथों के बीच हिंसा की वजह से बहुत कम हजारा छात्र है जो क्वेटा की यूनिवर्सिटीज में पढ़ते हैं. ज्यादातर छात्र बलूचिस्तान के बाहर की यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाई करते हैं. कराची के लिए निकलने पर भी इन्हें निशाना बना दिया जाता है. इन परिस्थितियों में समुदाय के हजारों लोगों ने देश छोड़ दिया है.

21 अप्रैल को प्रधानमंत्री इमरान खान हजारा समुदाय के लोगों से मिलने क्वेटा पहुंचे. संवेदना जताने के साथ-साथ उन्होंने आतंकवाद को खत्म करने के लिए NAP लागू करने का आश्वासन दोहराया और कहा कि वह दिन जल्द आएगा जब पाकिस्तान में शांति स्थापित होगी.

हालांकि, इमरान खान के इस दौरे की खूब आलोचना हुई क्योंकि वह हमले के लंबे वक्त बाद वहां पहुंचे थे.
क्वेटा के हजारा समुदाय में नाउम्मीदी और हताशा छाई हुई है. वे प्रदर्शन करते हैं लेकिन उन्हें पता है कि कुछ बदलने वाला नहीं है.

बलूचिस्तान में 2003 से लेकर अब तक हुए आत्मघाती हमलों में 817 लोगों की जानें जा चुकी है और 1600 से ज्यादा लोग घायल हुए. बलूचिस्तान के भीतर पंथ को लेकर भी संघर्ष बढ़ गए हैं. 2009 के बाद से पंथों के संघर्ष में 760 से ज्यादा लोग मारे गए.

पाकिस्तान की सरकार और सैन्य अधिकारी अक्सर बलूचिस्तान में हिंसा के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बलूचिस्तान पर टिप्पणी के बाद से पूरे पाकिस्तान में खूब हंगामा मचा था. हालांकि, भारत का कार्ड खेलकर पाकिस्तान बलूचों की समस्या से बच नहीं सकता है. बलूचिस्तान की समस्याओं पर पाकिस्तान को ध्यान देना ही होगा.

बलूचिस्तान में स्वायत्तता की मांग कर रहे समूहों में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) हैं. पाकिस्तानी सरकार अक्सर बीआरए नेता बलूचों के संघर्ष के लिए ब्रह्मदाग बुग्ती को जिम्मेदार ठहराते हैं जो भारत के समर्थक है लेकिन बुग्ती बलूच संघर्ष की बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा है.

1948 के बाद से बलूच पाकिस्तान के खिलाफ 1948, 1958 और 1974 में लड़ाई लड़ चुके हैं. हालांकि, 1996 में बलूच नेता हैयबैयर मरी ने बलूच आजादी की कोशिशों की कमजोरियों को आंकते हुए वर्तमान के बलूच लिबरेशन मूवमेंट की आधारशिला रखी जिसे 2000 में आकार मिला.

यह आंदोलन बलूचिस्तान से पाकिस्तानी सेना के लौटने और आजादी की मांग कर रहा है. इस संगठन को मिल रहा समर्थन पूरे पाकिस्तान के लिए चिंता का सबब है. पाकिस्तान ने इस आंदोलन को दबाने की बहुत कोशिशें कीं लेकिन असफल रहा.

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