नोटबंदी वाले वित्त वर्ष में 88 लाख टैक्सपेयर्स ने नहीं फाइल किया था रिटर्न , जाने वजह

नई दिल्ली : नोटबंदी वाले वित्त वर्ष 2016-17 में 88.04 लाख टैक्सपेयर्स ने इनकम टैक्स रिटर्न नहीं दाखिल किया था। जहां यह इसके पिछले वित्त वर्ष 2015-16 में 8.56 लाख रिटर्न न फाइल करने वाले टैक्सपेयर्स की तुलना में दस गुना ज्यादा है। वहीं कर अधिकारियों का कहां हैं की बाद पिछले करीब दो दशकों में यह सबसे ज्यादा डिफाल्ट है।

इनकम

बता दें की इसके पि‍छले वर्षों में टैक्स रिटर्न फाइल न करने वालों की संख्या लगातार घटी है। लेकिन वित्त वर्ष 2013 में ऐसे 37.54 लाख डिफाल्टर की तुलना में वित्त वर्ष 2014 में 27.02 लाख, वित्त वर्ष 2015 में 16.32 लाख और वित्त वर्ष 2016 में 8.56 लाख रही हैं।

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देखा जाये तो इनकम टैक्स विभाग के कुछ अध‍िकारियों ने स्वीकार किया कि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों में कमी की वजह से लोगों की नौकरियां चले जाने और आय में गिरावट की वजह से संभवत: इनकम टैक्स रिटर्न में कमी आई है।

वहीं एक टैक्स अधिकारी का कहना हैं की रिटर्न दाखिल करने वालों की कमी से पता चलता है कि अनुपालन और इसे लागू करने में कहीं खाई है। लेकिन लागू करने में विफल रहे हैं। लेकिन 2016-17 में रिटर्न फाइल न करने वालों की भारी संख्या को अनुपालन की आदत में किसी बड़े बदलाव की वजह से नहीं माना जा सकता. यह भारी उछाल उस साल लोगों की आय और नौकरियां घटने की वजह से हो सकता है।

कर आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में टीडीएस कटाने वालों की संख्या में भी 33 लाख तक की भारी कमी आई है। जहां इससे भी पता चलता है कि पिछले वर्षों में ऐसे ट्रांजैक्शन करने वाले लोगों ने नोटबंदी वाले वर्ष में कामकाज नहीं किया हैं।

दरअसल सीबीडीटी के अनुसार 1.75 करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनका टीडीएस/टीसीएस तो कटता है, लेकिन वे इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करते हैं। ऐसे ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिनकी आय टैक्स के दायरे में नहीं आती हैं। अधिकारियों का यह भी कहना है कि साल 2016 में टैक्स बेस, टैक्स्पेयर, न्यू टैक्सपेयर आदि की परिभाषा में केंद्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड द्वारा कुछ बदलाव किए गए थे और इसी वजह से साल 2016-17 में टैक्सपेयर बेस में 25 फीसदी का उछाल आया था।

इसके पिछले तीन साल में भी टैक्सपेयर बेस में सालाना करीब 18 फीसदी की बढ़त हुई थी। अप्रैल 2016 में सीबीडीटी ने टैक्सपेयर की परिभाषा बदलते हुए उन लोगों को भी टैक्सपेयर बेस में शामिल कर लिया था जो वित्त वर्ष  के दौरान टीडीएस या टीसीएस (टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स) के द्वारा कर का भुगतान कर चुके हैं।
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