ध्यान दें: सेहत के लिए fluoride water कितना खतरनाक?????

download (32)एजेंसी/फ्लोराइड की अधिक मात्रा शरीर में फ्लोरोसिस बीमारी का कारण बनती है। इससे पैदा होती है कैंसर से लेकर बांझपन तक की समस्या। जानिए और क्या रोग हो सकते हैं… ज्यादा मात्रा में फ्लोराइड वाला पानी पीने से आंतों में जलन, हाथ-पैरों में कंपन, केंसर, लकवा, उदरपीड़ा, त्वचा रोग, बालों का झडऩा, अंगुलियों में सूजन, हड्डियों में विकृतियां जैसी बीमारियों का खतरा रहता है। फ्लोराइड की अधिक मात्रा शरीर में फ्लोरोसिस का कारण बनती है। फ्लोराइड युक्त पानी पीने से होने वाली फ्लोरोसिस कई तरह से शरीर को प्रभावित करती है। गौरतलब है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने पर जल के रंग व स्वाद पर कोई बदलाव नहीं आता। यूनीसेफ की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 20 राज्य के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लाखों लोग फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से फ्लोरोसिस के शिकार हैं। सर्वाधिक प्रभावित राज्यों मे आंध्रप्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान है, जहां 70 से 100 प्रतिशत जिले फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं। राजस्थान के भूमिगत जल में फ्लोराइड का मानक स्तर एक पीपीएम से भी अधिक पाया गया है। पानी में एक पीपीएम से कम फ्लोराइड सामान्य माना जाता है। एक से ज्यादा होने पर खतरनाक है। पांच साल तक लगातार पानी पीने से से दांत खराब, 10 से 15 साल तक पानी पीने पर हड्डियों में बदलाव एवं 20 साल से अधिक पीने पर स्पाइनल कॉर्ड की संरचना में बदलाव आ जाता है।पानी में फ्लोराइड ज्यादा होने से जोड़ों को नुकसान होता है। फ्लोराइड जोड़ों के बीच जमा हो जाता है। इससे मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। घुटनों का मूवमेंट तक बंद हो जाता है। हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। फ्लोराइड केवल दांतों और हड्डियों को ही नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि हीमोग्लोबिन को भी कम करता है। हालिया हुए एक शोध में यह बात सामने आई बॉडी में अधिक फ्लोराइड खून में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करता है। पेट और आंतों के विकार भी पैदा हो जाते हैं।

गर्भावस्था में फ्लोराइड युक्त पानी से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पाता। बार-बार गर्भपात से बांझपन की समस्या पैदा होने लगती है।

पानी में फ्लोराइड होता है, लेकिन यदि यह ज्यादा मात्रा में हो तो यह थायराइड ग्रंथि को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे गर्भपात का खतरा बढ़ता है। इसके अलावा थायराइड ग्रंथि के प्रभावित होने से पुरुष और महिला दोनों के बांझ होने का खतरा बढ़ जाता है।

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