दर्दनाक: माता-पिता के शवों को सड़ते-गलते हुए देखता रहा शख्स, मदद की लगाता रहा गुहार, जानिये कैसे हुआ ‘अंतिम संस्कार’

दिल्ली के बरारी के रहने वाले लक्ष्मण तिवारी 26 अप्रैल, 2021 की तारीख कभी नहीं भूलेंगे। इसलिए नहीं, क्योंकि उन्होंने उस दिन अपने माता-पिता को खो दिया था और उनकी पत्नी अस्पताल में वायरस से जूझ रही थीं। बल्कि, इसलिए क्योंकि उसे उस दिन अपने माता-पिता की लाशों को सड़ते-गलते हुए देखा था। उसे उनके शवों को श्मशान ले जाने के लिए 20 घंटे तक इंतजार करना पड़ा था।

लक्ष्मण के 4 साल के बेटे ने अपने दादा-दादी को मरते हुए और उसके सामने क्षय होते देखा था। पड़ोसियों और अजनबियों से मदद की गुहार लगाई गई लेकिन कोई सामने नहीं आया। कोविड ने पूरे परिवार पर प्रहार किया था। लक्ष्मण की पत्नी 15 दिनों से अस्पताल में भर्ती थी। लक्ष्मण अपने बेटे के साथ घर में ही होम क्वारंटीन थे। 26 अप्रैल की शाम करीब 4 बजे, सपोर्ट सिस्टम में ऑक्सीजन खत्म होने के कारण लक्षमण की मां को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। एक घंटे तक हांफने, उन्मत्त घरघराहट, छटपटाहट के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। इससे पहले कि वह अपनी मां को खोने का ग़म मना पाता, कुछ ही घंटों बाद लक्ष्मण के पिता भी ऑक्सीजन के लिए हांफने लग गए। हताश बेटे ने अब अपने पिता की छाती को पंप करना शुरू कर दिया। लेकिन दोपहर करीब 1 बजे उसके पिता ने भी दम तोड़ दिया। कुछ देर के बाद जब लक्ष्मण ने पड़ोसियों से मदद की गुहार लगाई तो संक्रमण के डर से कोई आगे नहीं आया। लेकिन शायद उनमे से किसी ने व्हाट्सएप अलर्ट भेजा जो 35 वर्षीय इरतिजा कुरैशी तक पहुंच गया।

इरतिजा, जो एक कोरोना स्वयंसेवक हैं, लक्ष्मण की मदद को आगे आए। सुबह के चार बज रहे थे जब वे बरारी पुलिस स्टेशन पहुंचे और मदद की भीख मांगी लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अगले 7 घंटों में, इरतिजा ने अस्पतालों, एम्बुलेंस सुविधाओं और यहां तक ​​कि श्मशान घाट के अधिकारियों तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन कोई मदद नहीं पहुंची। इसके बाद वे न्यूज पोर्टल हिंदुस्तान लाइव चलाने वाले पत्रकार फरहान याहया के पास पहुंचे। फरहान ने तुरंत डीसीपी और एसएचओ बरारी से संपर्क किया, लेकिन वादों के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। अब तक, लक्ष्मण की माँ को गुज़रे हुए 17 घंटो से अधिक समय बीत चुका था और जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा था, मांस सड़ने की गंध बढ़ने लगी थी।

22 घंटे के दुख और निराशा के बाद, इरतिजा और फरहान एक एंबुलेंस का इंतज़ाम कर पाए जो लक्ष्मण के माता-पिता को फेरी देने के लिए तैयार हो गया। आखिरकार उन्हें ‘सम्मानजनक’ विदाई मिली। इरतिजा को बताया गया कि जब वे अंतत: एम्बुलेंस में लादे गए तो शव बेहद खराब हालत में थे।

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