जानिए कौन हैं संजीव भट्ट, जिसने गुजरात दंगों में मोदी पर उठाए थे अहम सवाल…

साल 1990 के हिरासत में मौत मामले में पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट और अन्य पुलिस अफसर प्रवीण सिंह जाला को जामनगर जिला अदालत ने गुरुवार को दोषी करार दिया.

 

मोदी

बता दें की इन दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. कोर्ट ने प्रवीण सिंह झाला और भट्ट को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. अन्य दोषियों को आईपीसी की धारा 323 और 506 के तहत दोषी करार दिया गया.

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यह मामला साल 1990 का है. उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर तैनात थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा के वक्त जमजोधपुर में संप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया.

जहां इनमें से एक शख्स प्रभुदास वैष्णानी की कथित टॉर्चर के कारण रिहा होने के बाद अस्पताल में मौत हो गई. इसके बाद आठ पुलिसवालों पर कस्टडी में मौत को लेकर मामला दर्ज किया गया, जिसमें भट्ट भी शामिल थे. लेकिन आखिर संजीव भट्ट हैं कौन और क्या है उनका इतिहास? आइए आपको बताते हैं.

देखा जाये तो संजीव भट्ट कई मामलों में विवादों में रहे हैं. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर विरोधी रहे हैं. 1985 में आईआईटी बॉम्बे से एम.टेक की डिग्री हासिल करने वाले भट्ट 1988 बैच के आईपीएस अफसर हैं.

 

वहीं कस्टोडियल डेथ के मामले के बाद साल 1996 में जब वह बनासकांठा जिले के एसपी थे, तब उन पर राजस्थान के एक वकील को फर्जी ड्रग्स मामले में फंसाने का आरोप लगा. साल 1998 में उन पर एक अन्य मामले में कस्टडी में टॉर्चर का आरोप लगा.

 

खबरों के मुताबिक दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक उन्होंने गांधीनगर स्थित स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर डिप्टी कमिश्नर ऑफ इंटेलिजेंस के तौर पर काम किया.

लेकिन उन पर गुजरात की आंतरिक, सीमा, तटीय और अहम प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का जिम्मा था. इसके अलावा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सिक्योरिटी भी भट्ट के ही हाथों में थी. इसी दौरान फरवरी-मार्च 2002 के दौरान गोधरा में ट्रेन जला दी गई, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. बताया जाता है कि इस घटना में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए.

9 सितंबर 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर बहुचराजी में एक भाषण में मुस्लिमों में उच्च जन्म दर पर सवाल उठाए. हालांकि मोदी ने ऐसे किसी भाषण से इनकार किया. इस पर नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटीज (NCM) ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी. मोदी के तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा ने बताया कि राज्य सरकार के पास उनके भाषण की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है.

साल 2003 में भट्ट को साबरमती सेंट्रल जेल का अधीक्षक बनाया गया. वह कैदियों के बीच खासे मशहूर रहे. इन्होंने जेल के खाने में गाजर का हलवा शामिल कराया. दो महीने बाद कैदियों से नजदीकियां बढ़ाने को लेकर उनका तबादला कर दिया गया. 14 नवंबर 2003 को करीब 2000 कैदी भूख हड़ताल पर चले गए. 6 दोषियों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए अपनी कलाई तक काट ली.

 

2002 दंगों के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं के समूह ने एक ट्रिब्यूनल का गठन किया. इस ट्रिब्यूनल को गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या ने बताया कि गोधरा हादसे के बाद मुख्यमंत्री आवास पर नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलाई थी. जहां इस बैठक में मोदी ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि हिंदुओं को अपना गुस्सा उतारने का मौका देना चाहिए.

दरअसल इस बैठक में शामिल पुलिस अफसरों में संजीव भट्ट भी थे. दंगों के 9 साल बाद 14 अप्रैल 2011 को भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और यही आरोप लगाए. उन्होंने गुजरात दंगों के लिए बनाई गई एसआईटी पर भी पक्षपात के आरोप लगाए.13 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी पर भट्ट के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया.

 

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