कभी भरी सभा में खींची थी जयललिता की साड़ी, आज नतमस्तक

जयललिताचेन्‍नई। तमिलनाडु की मुख्‍यमंत्री जे जयललिता ने दोबारा सत्‍ता में वापसी की है। सभी एग्जिट पोल्‍स को गलत साबित कर सत्‍ता में वापस लौटी जयललिता ने इसके लिए तमिलनाडु के लोगों का आभार व्‍यक्‍त किया। आपको बता दें कि इससे पहले तमिलनाडु के इतिहास में दो दशक पहले एमजीआर ने जीत की हैट्रिक लगाई थी।

जयललिता की दोबारा वापसी

साल 1984 के बाद राज्य में कोई भी सत्ताधारी पार्टी चुनाव वापस जीतने में सफल नहीं हुई थी। इसको लेकर जयललिता ने कहा कि वह अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए और ज्यादा मेहनत से काम कर राज्य के लोगों के अहसान को चुकाएंगी। जीत पर भावुक हुईं जयललिता ने कहा कि इस जीत पर अपनी भावनाओं को बयान करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। यह जीत वास्तव में ऐतिहासिक है।

आपको बता दें कि जयललिता का अभिनेत्री से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर उतार चढ़ाव से भरा रहा। जय ललिता अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचंद्रन उर्फ एमजीआर की बेहद करीबी थीं। जय ललिता ने अपने चार दशक के राजनीतिक जीवन में काफी उतार चढ़ाव देखे हैं। 15 साल की उम्र में फिल्मी करियर शुरू करने वाली जयललिता एक फेमस तमिल एक्ट्रेस भी रह चुकी हैं। एक विद्यार्थी के तौर पर भी पढ़ाई में उनकी काफी रुचि‍ रही।

जयललिता ने एमजीआर के साथ 28 फिल्मों में काम किया। एमजीआर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार थे और भारतीय राजनीति के सम्मानित नेताओं में थे। जय ललिता भी फिल्मी दुनिया को अलविदा कह कर एमजीआर के साथ राजनीति में आ गईं।

एम करुणानिधि की पार्टी द्रमुक से टूटने के बाद एमजीआर ने अन्नाद्रमुक का गठन किया। साल 1983 में एमजीआर ने जयललिता को पार्टी का सचिव नियुक्त किया और राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। इस बीच जय ललिता और एमजीआर के बीच मतभेद की खबरें भी आईं लेकिन जयललिता ने 1984 में पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया।

एमजीआर के निधन के बाद जय ललिता साल 1987 में पूरी तरह से उभर कर सामने आईं। हालांकि यह करना उनके लिए इतना आसान नहीं था। साल 1989 में डीएमके के एक मंत्री ने विधानसभा में उनके साथ बुरा बर्ताव किया था। आरोप तो यहां तक है कि उनकी साड़ी तक खींची गई थी। जिसके बाद उन्होंने कसम था ली थी कि वो विधानसभा मुख्यमंत्री बन कर ही लौटेंगी। हालांकि डीएमके विधानसभा में हंगामे के लिए जयललिता और उनके विधायकों को ही दोषी बताता रहा, लेकिन इस हंगामे के बाद से जय ललिता के विरोध की धुरी करूणानिधि हो गए थे।

जयललिता पहली बार साल 1991 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन तब तक जयललिता एक मजबूत राजनीतिक हस्ती बन चुकी थीं।

आय से अधिक संपत्ति रखने के लिए जय ललिता पर केस चला जिसमें वह दोषी भी पाई गईं। मामले में स्पेशल कोर्ट ने जया और तीन अन्य को चार साल की सजा और 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसकी वजह से उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी गंवानी पड़ी थी, लेकिन मई 2015 में कर्नाटक हाइकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था और कहा था कि अगर आय दस फीसदी ज्यादा हो तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता।

इसके बाद जय ललिता ने दोबारा राज्‍य की कमान संभाल ली और विधानसभा चुनावों के बाद अब उन्‍होंने दोबारा तमिलनाडु की राजनीति में वापसी कर ली है।

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