चुनाव आयोग समेत मोदी सरकार पर चला सुप्रीम कोर्ट का हंटर, इस फैसले से दुबारा चुनाव होना तय!

चुनाव आयोग के लिए सिरदर्दनई दिल्ली। पिछले दिनों गोवा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और मणिपुर समेत पांचो राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद से ही EVM मशीनों का मुद्दा चुनाव आयोग के लिए सिरदर्द बना हुआ है। दरअसल ईवीएम मशीनों में  VVPAT (वोटर वैरिफिकेशन पेपर आडिट ट्रे- पेपर स्लिप) के इस्तेमाल को लेकर चुनाव आयोग समेत केंद्र सरकार की दिक्कतें बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार समेत आयोग को कटघरे में खड़ा कर 8 मई तक जवाब मांगा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों में वोटर वेरिएबल पेपर ट्रेल (वीवीपीएटी) के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल को लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर से दायर याचिका पर गुरुवार को केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया। बसपा ने अपनी याचिका में कहा है कि चुनावों में सर्वोच्च न्यायालय के 2013 के दिशानिर्देश के अनुरूप मतदान के लिए ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का इस्तेमाल होना चाहिए।

न्यायमूर्ति जे.चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को भी अपने ‘इंटरवेंशन’ आवेदन दायर करने की अनुमति दी।

शीर्ष अदालत ने हालांकि वीवीपीएटी के बिना ईवीएम से हुए चुनावों को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी।

इस मामले में वरिष्ठ वकील पी.चिदंबरम बसपा की ओर से शीर्ष अदालत में पेश हुए।

उन्होंने पीठ से कहा कि निर्वाचन आयोग के कई बार बताए जाने के बावजूद सरकार ने ईवीएम के साथ वीवीपीएटी लगाने के लिए धनराशि आवंटित नहीं की।

उन्होंने शीर्ष अदालत से यह भी कहा कि निर्वाचन आयोग ने इस मुद्दे पर सामान्य नियमों से परे हटकर सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।

उन्होंने बताया कि ईवीएम के साथ वीवीपीएटी जोड़े जाने के लिए निर्वाचन आयोग को 3,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, पर केंद्र सरकार यह धनराशि आवंटित नहीं कर रही है।

पीठ को यह भी बताया कि दक्षिण अमेरिका के एक देश को छोड़कर विश्व के किसी भी देश में मतदान के लिए ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता।

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