इस परंपरा में लोगों पर फेंके जाते हैं आग के गोले, सुनकर ही उड़ जाते हैं सबके होश

दुनिया में कई मंदिर हैं और मंदिरों को लेकर कई परंपरा भी होती हैं जिन्हें आप अपनाते हैं. लोग अपने विशवास के चलते उन्हें मानते भी हैं. ऐसे ही एक मंदिर हैं जहां पर आपको किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो सकती. वाकिया मंगलोर के कैथल में देवी दुर्गा परमेश्‍वरी मंदिर में बिलकुल सच साबित होता है. आज हम इसी की एक अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो हैरानी भरी है.

आग के गोले
जानकारी के अनुसार यहां (Durga Parmeshwari Tempel) एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है जिसमें एक-दूसरे पर आग फेंकी जाती है. भक्‍त इसमें अपनी जान की कोई परवाह नहीं करते. बता दें कि यह एक परंपरा है, जिसे उत्‍सव के रूप में 8 दिनों तक मनाया जाता है.

यहां के लोगों का कहना है कि अग्नि केलि नाम की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. परंपरा दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच होती है. मंदिर में सबसे पहले देवी की शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसके बाद सभी तालाब में डुबकी लगाते हैं. फिर अलग-अलग दल बना लेते हैं.

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इन सब के बाद अपने-अपने हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के विरोध में खड़े हो जाते हैं. फिर मशालों जला जाता है. इसके लिए यह परंपरा शुरू हो जाती है. जलती मशालों को एक-दूसरे पर फेंका जाता है. यह खेल करीब 15 मिनट तक चलता है. एक शख्स को सिर्फ पांच बार जलती मशाल फेंक सकता है. बाद में वह मशाल को बुझाकर वहां से हट जाता है. ऐसा ही कुछ होता इस परंपरा में जिसमें किसी को कुछ नहीं होता.

यह है मान्‍यता
अग्नि केलि परंपरा के पीछे मान्‍यता कि अगर किसी भी व्‍यक्ति को आर्थिक या फिर शारीरिक रूप से कोई तकलीफ हो और वह इस खेल में शामिल हो जाए तो मां भवानी उसके सारे कष्‍ट दूर कर देती हैं. भक्‍त दूर-दूर से मातारानी के दर्शन कर उनसे अपनी मुराद पूरी करने की अरदास लेकर आते हैं.

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