खुलासा : ‘मैडम’ के इशारे पर नाचे देश के पीएम, अब जनता लेगी हिसाब

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहनई दिल्ली. पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान कहने को तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. परन्तु असल में सरकार की बागडोर सोनिया मैडम के हाथों में थी. एनएसी की फाइलें साफ़ बता रही हैं कि तत्कालीन पीएम का रिमोट सोनिया गाँधी के हाथों में था.

नेशनल एडवाइजरी कौंसिल के नाम से गठित इस परिषद की अध्यक्ष स्वयं सोनिया गाँधी थीं. यह परिषद सरकार को सलाह दिया करती थी. कोयला, बिजली, ज़मीन-जायदाद, विनिवेश से जुड़े मामलों पर फैसले लेती थी. औद्योगिक नीति के मामले में भी यह परिषद निर्णय लेती थी.

इस तरह सरकार की गलतियों का ठीकरा तो मनमोहन सिंह के सर फोड़ा जाता था परन्तु बिना किसी जबाबदेही के सरकार की सोनिया गाँधी चला रही थीं. मनमोहन सिंह बस एक रबर स्टाम्प बनकर रहे.

वर्तमान मोदी सरकार 2004 से 2014 के बीच सरकार के फैसलों से जुड़ी पीएमओ की 710 फाइलों को सार्वजनिक करेगी.

प्रधानमंत्री को अपने स्तर पर बहुत से महत्त्वपूर्ण फैसले लेने होते हैं. परन्तु मनमोहन सिंह को इन फैसलों को भी लेने की इजाज़त नहीं थी. यह राष्ट्रीय सलाहकार समिति सलाह के नाम पर आदेश जारी करती थी. मनमोहन सिंह चुपचाप इन आदेशों पर दस्तखत कर देते थे. परिषद् की ताकत का अंदाज़ा इसी बात से लगता है कि सोनिया गाँधी तमाम बड़े अफसरों को अपने ऑफिस 2, मोतीलाल नेहरू प्लेस में रिपोर्टिंग के लिए बुला लेती थीं. मंत्रियों को चिट्ठी लिखकर प्रोजेक्ट्स के बारे में जानकारी ली जाती थी. इसे पद और गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन कहा जा सकता है. क्योंकि मंत्री केवल प्रधानमंत्री के प्रति जवाबदेही रखते हैं, किसी परिषद के प्रति नहीं. सार्वजनिक होने वाली फाइलें यह दर्शाती हैं कि यह परिषद सलाह के नाम पर फैसले ले रही थी.

सलाहकार परिषद की बैठकों में लिए गए फैसले दर्शाते हैं कि मैडम को मनमोहन सिंह पर भरोसा नहीं था. इसी कारण छोटे बड़े तमाम फैसले ये कौंसिल लेती थी. फ़ाइल का एक नोट दिखाता है कि, “चेयरमैन (सोनिया गांधी) ने नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में खेलों के विकास के बारे में सिफारिशें 21 फरवरी 2014 को एक पत्र के माध्यम से भेज दी हैं. साथ ही देश में सहकारिता के विकास पर सिफारिशें भी सरकार को भेजी जा रही हैं. इन पर चेयरमैन (सोनिया गांधी) की अनुमति ली जा चुकी है.”

तमाम छोटी-बड़ी सिफारिशें के प्रधानमंत्री कार्यालय या मंत्रालयों में पहुंचने पर उन्हें बिना किसी सवाल-जवाब या बदलाव के अप्रूवल दे दिया जाता था.

कोयला और 2जी घोटालों में जिन फैसलों के कारण मंत्रियों और अधिकारियों को जेल जाना पड़ा है, वो फैसले भी शायद सोनिया गांधी के ही लिए हुए थे. अगर इस बारे में सबूत मिलते हैं तो इन तमाम घोटालों की चल रही कानूनी कार्यवाही में यह एक बड़ा उलटफेर साबित होगा.

एनएसी का सच

इस परिषद  की चेयरमैन खुद सोनिया गांधी थीं. जिन्होंने  इसके अपने चापलूस और भरोसेमंद लोगों को इसका सदस्य बना रखा था. इसके सामाजिक कार्यकर्ता आम तौर पर देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय देखे गये. केजरीवाल के साथी रहे अरुणा रॉय और योगेंद्र यादव इसी कमेटी में हुआ करते थे। 2005-06 के आसपास अरविंद केजरीवाल भी इस कमेटी में घुसने का भरपूर प्रयास कर रहे थे और इसके लिए उन्होंने सिफारिशें भी लगवाई थीं. सोनिया गांधी ने उन्हें कौंसिल का सदस्य तो नहीं बनाया, परन्तु उन्हें एक अलग एजेंडे पर लगा दिया गया था. कांग्रेस के कई सीनियर नेता और खुद योगेन्द्र यादव भी इसकी पुष्टि कर चुके हैं.

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