ऑपरेशन ब्लू स्टार की आज है बरसी, इतिहास के पन्नों में दर्ज है स्याह दास्तां

नई दिल्लीः ऑपरेशन ब्लू स्टार की आज बरसी है. 6 जून 1984 में ये भयानक ऑपरेशन हुआ था, इस ऑपरेशन में 492 लोगों की जान चली गई थी और सेना के 83 जवान शहीद हुए थे. ये इंदिरा गांधी के शासनकाल में हुआ.

ऑपरेशन ब्लू स्टार

सिखों के पावन स्थल स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया. इस ऑपरेशन की चर्चा पूरी दुनिया में हुई. ये ऐसा दिन था, जिसे चाह कर भी लोग भूला नहीं सकते हैं. आइए जानते हैं कुछ खास बातें.

1970 के दशक के अंत में अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों को लेकर शुरू हुआ था. साल 1978 में पंजाब की मांगों पर अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया.

इसके मूल प्रस्ताव में सुझाव दिया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, जबकि अन्य सब विषयों पर राज्यों के पास पूर्ण अधिकार हो.

अकालियों की मांगें थीं- चंडीगढ़ पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाए. नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए.

‘नहरों के हेडवर्क्स’ और बिजली बनाने के मूलभूत ढांचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो.

फौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए और अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून बनाया जाए. इस इस बारे में इंदिरा गांधी की सरकार और अकालियों के बीच तीन बार बात हुई थी ताकि इस मुद्दे को सुलझाया जा सके. लेकिन मामला सुलझने की जगह हाथ से रेत की तरह फिसलता रहा.

अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को हिंसक झड़प हुई.

विश्लेषक के अनुसार शुरुआत में सिखों पर अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए कांग्रेस ने सिख प्रचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले को परोक्ष रूप से सपोर्ट किया.

इसके पीछे कांग्रेस का मकसद था कि अकालियों के सामने किसी संगठन या ऐसे व्यक्ति को खड़ा किया जाए, जो उनको मिलने वाले सपोर्ट को खत्म कर सके.

अकाली दल भारत की राजनीति की मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की मांगों की बात कर रहा था, लेकिन सुचारू रूप से कर नहीं पाता था. वहीं जरनैल सिंह भिंडरावाले ने सीधे तौर पर केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरू कर दिया. वे विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों, धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देने लगे.

कुछ लोगों का मानना था कि वे सिखों की मांगों और धार्मिक मसलों की बात कर रहे हैं. साथ ही हिंसा भी बढ़ रही थी. सितंबर 1981 में हिंद समाचार-पंजाब केसरी अखबार समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई. जालंधर, तरनतारन, अमृतसर, फरीदकोट और गुरदासपुर में कई लोगों की जान गई.

कांग्रेस पर लगातार ये आरोप लगते रहे कि उसकी केंद्र और राज्य सरकारों ने भिंडरावाले को रोकने की कोई कोशिश तक नहीं की. लेकिन साल 1981 में भिंडारावाले की गिरफ्तारी हुई लेकिन वहां भीड़ और पुलिस के बीच झड़प हुई. इसमें ग्यारह लोगों को जान गई.

भिंडारावाले का साथ जनता ने दिया और उनके साथ अकाली दल भी शामिल हो गया. 1981 में भिंडरावाले को रिहा कर दिया गया. उसके बाद वह चौक महता गुरुद्वारा छोड़ पहले स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास और इसके बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से विचार व्यक्त करने लगे. अकाली दल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के खिलाफ जुलाई 1982 में अपना ‘नहर रोको मोर्चा’ छेड़ रखा था, जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता लगातार गिरफ्तारियां दे रहे थे. लेकिन भिंडारेवाले ने अपने साथी ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर अभियान शुरू कर दिया और गिरफ्तारियां देने लगे.

इसके बाद तो खूनी दौर शुरू हो गया. मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर हमला हुआ. 1983 में पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक एएस अटवाल की दिन दहाड़े स्वर्ण मंदिर परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई. वह मंदिर में माथा टेकने आए थे.

सौ पुलिसकर्मी होते हुए भी थे अटवाल का शव करीब दो घंटे तक वहीं पड़ा रहा. इस हत्या के कुछ दिन बाद पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिन्दुओं की हत्या कर दी थी.

इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. फिर तो जैसे पंजाब की स्थिति बिगड़ती चली गई और मरने वालों की संख्या 298 हो गई थी.

हरियाणा में सिखों के खिलाफ हिंसा होने के बाद आखिरी चरण की बातचीत फरवरी 1984 में टूट गई.

एक जून को भी स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात पुलिसकर्मियों के बीच गोलीबारी हुई. दो जून को परिसर में हजारों श्रद्धालुओं ने आना शुरू कर दिया था, क्योंकि गुरु अरजन देव का गुरुपर्व शुरू होने वाला था. लेकिन हालत नाजुक होने के कारण पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया.

तीन जून तक भारतीय सेना अमृतसर में प्रवेश कर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर चुकी थी. चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी.  खून-खराबे के बाद अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया. स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियां चलीं और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पुस्तकालय बुरी तरह जल गया.

भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए. 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार किया गया.

वहीं सिख संगठनों का कहना है कि स्वर्ण मंदिर में मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या भी हजारों में है.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिखों और कांग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई और इंदिरा गांधी के दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने उनकी हत्या कर दी. इंदिरा की हत्या 31 अक्टूबर 1984 में की गई थी.

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