
सुप्रीम कोर्ट ने निठारी सीरियल किलिंग्स के मुख्य आरोपी सुरिंदर कोली को बरी करते हुए तत्काल रिहाई का आदेश दिया है। कोर्ट ने पुलिस जांच को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य फॉरेंसिक प्रमाण से समर्थित नहीं हैं और अंग तस्करी जैसे महत्वपूर्ण सुरागों की अनदेखी की गई। कोली का कथित इकबालिया बयान अविश्वसनीय है, क्योंकि उन्हें 60 दिन से अधिक पुलिस हिरासत में रखा गया बिना कानूनी सहायता या मेडिकल जांच के।
चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने मंगलवार को फैसले में कहा कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने इकबालिया बयान रिकॉर्ड करते समय ट्यूटरिंग और यातना की आशंका जताई थी। कोली 2006 से जेल में थे। कोर्ट ने जांच में कई खामियां गिनाईं—क्राइम सीन को सुरक्षित करने में देरी, रिमांड और रिकवरी दस्तावेजों में विरोधाभास, समय पर मेडिकल जांच की कमी और अधूरी फॉरेंसिक रिपोर्टिंग।
कोर्ट ने पूछा, “एक अर्ध-शिक्षित घरेलू नौकर, जिसे कोई मेडिकल ट्रेनिंग नहीं, कैसे शरीरों का इतनी सटीक तरीके से टुकड़े-टुकड़े कर सकता था?” घर के बाहर मिले चाकू, कुल्हाड़ी और मानव अवशेषों का कोली से कोई वैध लिंक नहीं पाया गया। पड़ोसियों और घरेलू गवाहों से पूछताछ नहीं हुई, न ही महत्वपूर्ण सुरागों का पीछा किया गया। फॉरेंसिक विश्लेषण में डी-5 हाउस में मानव रक्त या अवशेष नहीं मिले जो अपराध से जुड़े हों।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व बरी करने के फैसले से सहमति जताई और कहा कि संदेह पर सजा नहीं दी जा सकती, खासकर जब कोली अन्य संबंधित मामलों में पहले ही बरी हो चुके हैं। बेंच ने पीड़ित परिवारों के दर्द पर खेद जताया, लेकिन कहा कि आपराधिक कानून में संदेह से परे प्रमाण जरूरी है।
फैसले में कहा गया, “निठारी के अपराध अत्यंत जघन्य थे और परिवारों का दर्द असीम है। यह गहरा अफसोस की बात है कि लंबी जांच के बावजूद वास्तविक अपराधी की पहचान कानूनी मानकों के अनुरूप नहीं हो सकी। आपराधिक कानून अनुमान या संदेह पर सजा नहीं देता। कितना भी गंभीर संदेह हो, वह संदेह से परे प्रमाण की जगह नहीं ले सकता।”
2005 में नोएडा के निठारी गांव में महिलाओं और बच्चों के लापता होने की शिकायतें आईं। दिसंबर 2006 में डी-5 और डी-6 हाउस के पास मानव अवशेष मिलने से सनसनी फैल गई। नोएडा पुलिस ने कोली और उनके मालिक मोनिंदर सिंह पंधेर को गिरफ्तार किया। 2007 में सीबीआई ने जांच संभाली।
कोली ने 14 साल की रिम्पा हलदर की हत्या-बलात्कार का इकबालिया बयान दिया, जिसके आधार पर कई सजाएं हुईं। 2012 तक मौत की सजा, 2015 में उम्रकैद और 2019 तक कई मामलों में बरी। अब अंतिम मामले में भी बरी होने से निठारी कांड का कानूनी अध्याय समाप्त हो गया।





