Lookback 2021: साल 2021 में हुआ इन देशों में सत्ता परिवर्तन, जाने कौन से है वह देश
साल 2021 खत्म होने में कुछ दिन ही शेष रह गए है। 2021 में हर क्षेत्र में कुछ न कुछ अवश्य हुआ, फिर चाहे वो इंटरनेटमेंट हो, स्वास्थ्य हो या राजनीति रही हो। इस साल कई देशों में सत्ता परिवर्तन भी हुआ है। 2021 में ईरान, इजराइल, ईटली समेत कई देशों में चुनाव हुए। जिसके बाद नेताओं को भी जनता के फैसले के सामने सालों बाद अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी है। तो चलिए जानते हैं ऐसे ही देशों के बारे में जहां पर 2021 में सत्ता परिवर्तन हुआ।
अमेरिका: यूएसए में राष्ट्रपति के लिए चुनाव 2020 में हुए थे। डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने इन चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को हराकर जीत हासिल की थी। 20 जनवरी 2021 को 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के साथ ही अमेरिका में बाइडेन युग की शुरुआत हुई थी।
जो बाइडेन के साथ भारतीय मूल की कमला हैरिस ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। राष्ट्रपति निवास छोड़ने से पहले कैपिटल हिल्स में ट्रंप समर्थकों ने खूब हंगामा किया था। इस दौरान सुरक्षा बलों को फायरिंग भी करनी पड़ी थी। लोगों ने इसे अमेरिकी इतिहास का सबसे खराब दिन बताया था।
इजराइल: नेफ्ताली बेनेट ने 14 जून को इजराइल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके साथ ही 12 साल से प्रधानमंत्री पद पर काबिज बेंजामिन नेतन्याहू का कार्यकाल खत्म हो गया था। नेतन्याहू पर कई घोटालों के आरोप लगे थे। इजराइल के नए प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेटे एक पूर्व टेक आंत्रप्योर हैं। वो काफी पैसों वाले शख्स हैं और करोड़ों रुपये की संपत्ति के मालिक हैं। उनके माता पिता इजराइल के नहीं बल्कि अमेरिका के हैं जो इजाइयल में आकर बस गए। नेफ्ताली बेनेट ने बाद में अपनी पहचान एक राजनेता के तौर पर बनाने लगे। उनकी पहचान एक घोर दक्षिणपंथी राजनेता के तौर पर होती है। वो हमेशा से वेस्ट बैंक पर पूरी तरह कब्जा करने के पक्ष में रहे हैं।
नेफ्ताली के राजनीतिक करियर की बात करें तो वो पहले नेतन्याहू के साथ ही सरकार में थे। बेनेट ने नेतन्याहू के लिए 2006 और 2008 के बीच एक वरिष्ठ सहयोगी के रूप में काम किया। बाद में उनके आपसी रिश्ते खराब हो गए और उन्होंने लिकुड पार्टी को छोड़ दिया। बेनेट दक्षिणपंथी राष्ट्रीय धार्मिक ‘यहूदी होम पार्टी’ में शामिल हो गए। इसके बाद 2013 में बेनेट इसके प्रतिनिधि के रूप में संसद में पहुंचे। वह वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गोलान हाइट्स पर यहूदियों के ऐतिहासिक और धार्मिक दावों को अपना समर्थन देते हैं। वह इजराइल की सेना में कमांडो भी रहे हैं।
जर्मनी: 8 दिसंबर को जर्मन पार्लियामेंट ने एंजेला मर्केल के उत्तराधिकारी के रूप में ओलाफ शोल्ज (Olaf Scholz) को नया चांसलर नियुक्त किया। शोल्ज की नियुक्ति के साथ ही जर्मनी में एंजेला मर्केल के युग का अंत हो गया। मर्केल 16 साल तक चांसलर के पद पर बनी रहीं। मर्केल, 22 नवंबर 2005 को जर्मनी की चांसलर बनने वाली पहली महिला थीं। एंजेला मर्केल ने अपने कार्यकाल में चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों, चार फ्रांसीसी राष्ट्रपतियों, पांच ब्रिटिश प्रधानमंत्रियों और आठ इतालवी प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया।
अपने कार्यकाल में उन्होंने चार प्रमुख चुनौतियों – वैश्विक वित्तीय संकट, यूरोप का ऋण संकट, 2015-16 में यूरोप में शरणार्थियों की आमद और कोविड-19 वैश्विक महामारी का सामना किया ओलाफ शोल्ज की सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी ने 26 सितंबर को हुए चुनाव में मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी। इसके बाद से वे ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेट्स पार्टी के साथ गठबंधन सरकार को लेकर बातचीत कर रहे थे।
ईरान: इस साल इब्राहिम रईसी को ईरान का राष्ट्रपति चुना गया। रईसी से पहले इस पद पर हसन रूहानी थे। इब्राहिम रईसी को सबसे कट्टर राष्ट्रपति कहा जाता है। रईसी को 1988 का “तेहरान का जल्लाद” भी कहा जाता रहा, जिसने अपने खिलाफ खड़े हजारों लोगों को मौत दे दी थी।खुद को कट्टर शिया और ईरान में धर्म का रखवाला बताने वाले रईसी ने कम उम्र में ही अहम राजनैतिक ओहदे पाने शुरू कर दिए। कहा जाता है कि वो उस कमीशन के प्रमुख सदस्य थे, जिसके एक फैसले में तेहरान में नरसंहार मचा दिया।
तब रईसी की उम्र महज 20 साल थी। वे तेहरान के वेस्ट में करज की कोर्ट के प्रोसिक्यूटर हुआ करते थे। जल्द ही उनका प्रमोशन तेहरान हो गया। वहां वो उस सीक्रेट ट्रिब्यूनल का हिस्सा बन गए, जिसे डेथ कमेटी के नाम से भी जाना जाता है। इस बात का जिक्र बीबीसी की एक रिपोर्ट में मिलता है।
इटली: पूर्व यूरोपीय सेंट्रल बैंक के प्रमुख मारियो द्रागी इटली के नए प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 13 फरवरी को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 73 वर्षीय द्रागी ‘सुपर मारियो’ के रूप में जाने जाते हैं। बता दें कि पिछले प्रधानमंत्री जियूसेपे कोंटे ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनकी पार्टी ने यूरोपीय संघ रिकवरी निधि की खर्च के लिए योजनाओं पर गठबंधन सरकार के लिए समर्थन खो दिया था।