
जापान ने हाल ही में उत्तरी तट पर 7.5 तीव्रता के भूकंप के बाद मेगाक्वेक की दुर्लभ चेतावनी जारी की, जिससे 8 या इससे अधिक तीव्रता का खतरा बढ़ गया। यह चेतावनी सुनामी की आशंका के साथ आई, लेकिन विशेषज्ञ स्पष्ट करते हैं कि यह सटीक भविष्यवाणी नहीं, बल्कि संभावना आधारित मूल्यांकन है।
दुनिया का ध्यान इस पर गया, क्योंकि जापान भूकंप के लिए सबसे तैयार देशों में से एक है। इससे पुराना सवाल फिर उठा: क्या भूकंप की भविष्यवाणी संभव है? भारत में भी हिमालय को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जवाब सरल नहीं है। भूकंप का जोखिम मैप किया जा सकता है और अर्ली वॉर्निंग से जानें बचाई जा सकती हैं, लेकिन सटीक समय, जगह और तीव्रता बताना अभी असंभव है। जापान कई टेक्टोनिक प्लेटों के जंक्शन पर है, जहां सबडक्शन जोन से तनाव जमा होता है। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. ओपी मिश्रा बताते हैं कि फुकुशिमा जैसी घटनाएं इसी क्षेत्र से आईं। नवीनतम मॉडल से 8 या अधिक तीव्रता का अनुमान लगा, जिससे चेतावनी जारी हुई।
भूकंप तब होता है जब भूमिगत चट्टानें दबाव से फटती हैं और ऊर्जा सीस्मिक तरंगों के रूप में निकलती है। आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. के शेषगिरि राव कहते हैं कि पैटर्न पहचाने जा सकते हैं, लेकिन फॉल्ट कब टूटेगा, यह बताना मुश्किल है। जापान में नंकाई ट्रफ जैसे क्षेत्रों के लिए उन्नत सिस्टम हैं, जो भूकंप शुरू होने पर सेकंडों की चेतावनी देते हैं। ट्रेन रुक जाती हैं, लोग कवर लेते हैं। लेकिन दिन-घंटे पहले की भविष्यवाणी अभी दूर की कौड़ी है।
कारण यह कि भूकंप 10-20 किलोमीटर गहराई में होता है, जहां सीधे उपकरण नहीं पहुंचते। माइक्रो-फ्रैक्चर पता नहीं चलते। उच्च तनाव वाले फॉल्ट सेगमेंट की पहचान हो सकती है, लेकिन रप्चर का सटीक समय नहीं। जापान की चेतावनी भी संभाव्यता पर आधारित है, न कि निश्चित पूर्वानुमान पर।
हिमालय की कहानी अलग और जटिल है। आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर संदीप सिंह कहते हैं कि जापान जैसा भूकंप हिमालय में आने की अटकलें गलत हैं। भारतीय और यूरेशियन प्लेटों की टक्कर से तनाव सदियों में जमा होता है। 2500 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में यह एक जगह नहीं होता। जापान का भूकंप हिमालय को ट्रिगर नहीं कर सकता, दूरी ज्यादा है और फॉल्ट जुड़े नहीं।
भारत ने हाल ही में नया सीस्मिक मैप जारी किया, जिसमें पूरा हिमालय जोन VI में है, सबसे उच्च जोखिम वाला। लेकिन यह लंबी अवधि का जोखिम है, न कि तत्काल खतरा। भूकंप पृथ्वी की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। विज्ञान जोखिम को हाइलाइट कर सकता है, भूकंप-प्रतिरोधी निर्माण, मॉनिटरिंग और तैयारी पर जोर दे सकता है।
असुविधाजनक सच्चाई यही है कि भूकंप को संभाव्यता के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन घड़ी की तरह सटीक नहीं। असली ताकत सटीक अनुमान में नहीं, बल्कि जोखिम स्वीकार कर तैयारी में है। जब धरती हिलेगी, तब तैयार रहना ही बचाएगा।





