
चीन ने सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। रॉयटर्स की 17 दिसंबर 2025 की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार, शेनझेन में एक हाई-सिक्योरिटी लैबोरेटरी में चीनी वैज्ञानिकों ने एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट (EUV) लिथोग्राफी मशीन का एक प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है।
यह प्रोटोटाइप 2025 की शुरुआत में पूरा हुआ और अब टेस्टिंग के दौर से गुजर रहा है। इस उपलब्धि को चीन के सेमीकंडक्टर ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ से तुलना की जा रही है, जो अमेरिका के परमाणु बम प्रोजेक्ट की तरह गोपनीय और राष्ट्रव्यापी प्रयास है।
EUV मशीन क्यों इतनी महत्वपूर्ण?
EUV मशीनें दुनिया की सबसे जटिल मशीनों में से एक हैं, जो सिलिकॉन वेफर्स पर नैनोमीटर स्तर के सर्किट उकेरती हैं। ये सर्किट इंसानी बाल से हजारों गुना पतले होते हैं और AI, स्मार्टफोन, क्वांटम कंप्यूटिंग तथा आधुनिक हथियारों के लिए जरूरी एडवांस्ड चिप्स बनाने में इस्तेमाल होते हैं। एक EUV मशीन की कीमत करीब 250 मिलियन डॉलर है। अब तक इस टेक्नोलॉजी पर नीदरलैंड की कंपनी ASML का एकाधिकार रहा है। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने एक्सपोर्ट कंट्रोल्स के जरिए चीन को इस तकनीक से दूर रखा था।
प्रोजेक्ट की गोपनीयता और तुलना
यह प्रोजेक्ट बेहद गोपनीय तरीके से चलाया गया। इसमें हजारों इंजीनियर, यूनिवर्सिटी, स्टेट लैब्स और हुवावे जैसी कंपनियां शामिल हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी डिंग शुएशियांग, जो सेंट्रल साइंस एंड टेक्नोलॉजी कमिशन के प्रमुख हैं, इसकी निगरानी कर रहे हैं। टीमों को एक-दूसरे से अलग रखा गया, कई इंजीनियर फर्जी पहचान के साथ काम कर रहे हैं और कैंपस में ही रहते हैं। पुरानी ASML मशीनों के पार्ट्स को सेकंडरी मार्केट से खरीदकर और रिवर्स इंजीनियरिंग से प्रोटोटाइप बनाया गया। इसमें पूर्व ASML इंजीनियर्स की भूमिका अहम रही।
प्रोटोटाइप अभी चिप्स नहीं बना रहा, लेकिन EUV लाइट जेनरेट करने में सक्षम है। यह ASML की मशीनों से काफी बड़ा है (पूरी फैक्ट्री फ्लोर घेरता है)। विशेषज्ञों का अनुमान है कि कामयाब चिप्स बनाने में 2028 से 2030 तक लग सकता है।
पश्चिमी देशों की चिंता
अप्रैल 2025 में ASML के CEO क्रिस्टोफ फूके ने कहा था कि चीन को EUV टेक्नोलॉजी विकसित करने में “बहुत साल” लगेंगे। लेकिन यह प्रोटोटाइप विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों को गलत साबित करता है। अमेरिका ने 2018 से ASML पर दबाव डालकर चीन को EUV मशीनें बेचने से रोका है। यह सफलता चीन को AI और मिलिट्री टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम है, जो वैश्विक सेमीकंडक्टर प्रतिस्पर्धा को बदल सकता है।
चीन के लिए यह सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता का सवाल है। हालांकि, प्रोटोटाइप अभी प्रारंभिक चरण में है और कमर्शियल प्रोडक्शन में अभी समय लगेगा।




