
अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट के लिए 2018 में दी गई प्रतिबंध छूट को रद्द कर दिया है, जो भारत के लिए एक बड़ा झटका है। यह निर्णय 29 सितंबर 2025 से प्रभावी होगा, जिसके बाद चाबहार पोर्ट के संचालन, वित्तपोषण या सेवा से जुड़ी किसी भी गतिविधि में शामिल व्यक्ति या संस्था को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ईरान के खिलाफ “अधिकतम दबाव” नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ईरान को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करना है।
चाबहार पोर्ट का महत्व
चाबहार पोर्ट, जो ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में ओमान की खाड़ी के किनारे स्थित है, भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भारत को पाकिस्तान को बायपास करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार और मानवीय सहायता के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। भारत ने इस पोर्ट के शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल को विकसित करने के लिए 2003 से प्रयास शुरू किए थे और 2018 से भारत पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) के माध्यम से इसका संचालन कर रहा है।
- आर्थिक महत्व: चाबहार पोर्ट ने 2018 से अब तक 90,000 TEUs (कंटेनर) और 8.4 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक बल्क कार्गो को संभाला है। यह पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस, और यूरोप को जोड़ने वाला 7,200 किमी लंबा मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट है।
- रणनीतिक महत्व: यह पोर्ट पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट (जो चीन द्वारा संचालित है) से केवल 140 किमी दूर है। चाबहार भारत को अरब सागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने में मदद करता है।
- मानवीय सहायता: भारत ने चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान को 2.5 मिलियन टन गेहूं, 2,000 टन दालें, और कोविड-19 महामारी के दौरान दवाइयां भेजी हैं। 2021 में, भारत ने ईरान को टिड्डी नियंत्रण के लिए 40,000 लीटर पर्यावरण-अनुकूल कीटनाशक भी आपूर्ति किया।
अमेरिकी फैसले का कारण
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय ट्रम्प प्रशासन की “अधिकतम दबाव” नीति के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) और सैन्य गतिविधियों को वित्तपोषित करने वाली अवैध वित्तीय नेटवर्क को बाधित करना है। 2018 में दी गई छूट का उद्देश्य अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास को समर्थन देना था, लेकिन 2021 में तालिबान के सत्ता में आने और भारत के 2024 में 10 साल के दीर्घकालिक समझौते के बाद अमेरिका का मानना है कि चाबहार अब ईरान के लिए एक वाणिज्यिक जीवन रेखा बन सकता है।
भारत के लिए प्रभाव
- आर्थिक नुकसान: भारत ने चाबहार में अब तक 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया है और 250 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन की योजना बनाई है। प्रतिबंधों के लागू होने से भारतीय कंपनियां, विशेष रूप से IPGL, को अमेरिकी वित्तीय और कानूनी दंड का सामना करना पड़ सकता है, जिससे प्रोजेक्ट की प्रगति रुक सकती है।
- रणनीतिक चुनौती: चाबहार भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है। इसकी बाधा भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजनाओं को प्रभावित कर सकती है और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और ग्वादर पोर्ट को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचा सकती है।
- कूटनीतिक जटिलता: भारत को अब अमेरिका, ईरान, इजरायल, और खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यह निर्णय भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के बीच आया है, जो पहले से ही रूसी तेल खरीद और टैरिफ जैसे मुद्दों पर तनाव का सामना कर रहा है।
- INSTC पर असर: चाबहार INSTC का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रतिबंधों से इस कॉरिडोर के माध्यम से रूस और यूरोप के साथ भारत का व्यापार प्रभावित हो सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत इस फैसले के निहितार्थों की जांच कर रहा है। सरकार आंतरिक विचार-विमर्श कर रही है ताकि इस रणनीतिक प्रोजेक्ट को बचाया जा सके। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी कूटनीतिक ताकत का उपयोग करके अमेरिका के साथ बातचीत कर सकता है, क्योंकि चाबहार न केवल भारत और ईरान के लिए, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
चाबहार पोर्ट पर अमेरिकी प्रतिबंध छूट का रद्द होना भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक दोनों दृष्टि से एक बड़ा झटका है। यह भारत के क्षेत्रीय प्रभाव और व्यापारिक महत्वाकांक्षाओं को प्रभावित कर सकता है, साथ ही चीन को क्षेत्र में मजबूती दे सकता है। भारत अब इस स्थिति से निपटने के लिए कूटनीतिक और वैकल्पिक रणनीतियों पर विचार कर रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत इस चुनौती का सामना कैसे करता है और अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को कैसे सुरक्षित रखता है।