
सुप्रीम कोर्ट सोमवार (15 सितंबर 2025) को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 से जुड़े तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना अंतरिम आदेश सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 22 मई को इन मुद्दों पर सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
यह फैसला वक्फ संपत्तियों की डिनोटिफिकेशन (हटाने), राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना तथा सरकारी भूमि पर जांच संबंधी प्रावधानों पर केंद्रित होगा। याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताते हुए स्टे की मांग की है, जबकि केंद्र ने इसे संवैधानिक बताया है।
अधिनियम को 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू की मंजूरी मिली और 8 अप्रैल को अधिसूचित किया गया। यह वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करता है, जिसमें वक्फ संपत्तियों की पंजीकरण अनिवार्यता, बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और डिनोटिफिकेशन की शक्ति शामिल है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और गैर-न्यायिक प्रक्रिया से संपत्तियां छीनी जा सकती हैं। वकील कपिल सिब्बल ने इसे “ऐतिहासिक सिद्धांतों से विचलन” बताया। केंद्र ने 25 अप्रैल को 1,332 पेज का हलफनामा दाखिल कर स्टे का विरोध किया, कहा कि संसद द्वारा पारित कानून को “संवैधानिक अनुमान” का लाभ मिलना चाहिए।
तीन मुद्दे:
- वक्फ संपत्तियों की डिनोटिफिकेशन: अदालतों, उपयोग या दस्तावेज से घोषित वक्फ संपत्तियों को सूची से हटाने की शक्ति।
- वक्फ बोर्डों की संरचना: राज्य बोर्डों और केंद्रीय परिषद में केवल मुस्लिम सदस्यों की मांग, एक्स-ऑफिशियो सदस्यों को छोड़कर।
- सरकारी भूमि जांच: कलेक्टर द्वारा जांच में वक्फ संपत्ति को सरकारी भूमि मानने का प्रावधान।
सुप्रीम कोर्ट ने मई में पांच प्रमुख याचिकाओं (100+ में से) पर सुनवाई की, जहां सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकीलों ने तर्क दिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखा। कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत पर ही विचार होगा। यह फैसला वक्फ संपत्तियों (मस्जिदें, स्कूल, गरीबों की सहायता) के प्रबंधन को प्रभावित करेगा।