निजी स्वास्थ्य सेवा पर खर्च का बोझ उठाने में भारत छठे स्थान पर

निजी स्वास्थ्य सेवाओंइंग्लैंड की स्वास्थ्य सेवाओं की शोध-पत्रिका ‘द लांसेट’ में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि 2014 में दुनिया के 50 निम्न-मध्यम आय वाले देशों में निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के मामले में भारत छठे स्थान पर रहा।

लांसेट ने 184 देशों में सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को लेकर दो अध्ययन किए। यह दोनों ही अध्ययन पत्रिका के ताजा अंक में प्रकाशित हुए हैं।

पहले अध्ययन में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल खर्च सीधे-सीधे आर्थिक विकास पर निर्भर करता है, लेकिन विभिन्न देशों में इसमें भी अंतर देखने को मिला। वहीं दूसरे अध्ययन में कहा गया है कि निम्न आय वाले देशों में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में वृद्धि किए जाने की जरूरत है, क्योंकि इन देशों में निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाएगी।

सर्वेक्षण में शामिल 184 देशों में भारत और बांग्लादेश निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के मामले में संयुक्त रूप से छठे स्थान पर रहे। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की हिस्सेदारी 65.6 फीसदी है, जो वैश्विक औसत (मीडियन) 28.15 फीसदी से 37.45 फीसदी अधिक है।

अध्ययन के अनुसार, भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया का निजी स्वास्थ्य सेवा पर खर्च का औसत 55.4 फीसदी है, जिससे भारत और बांग्लादेश 10.2 फीसदी अधिक खर्च करते हैं।

इतना ही नहीं भारत ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर सर्वाधिक खर्च करने वाला देश है। ब्रिक्स देशों का निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च का औसत 34.6 फीसदी है, जिससे भारत 31 फीसदी अधिक खर्च करता है।

जहां तक बात सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने की है, तो भारत 2014 में 184 देशों में 147वें स्थान पर रहा, पाकिस्तान से मामूली नीचे। 2014 में भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कुल खर्च का 31.3 फीसदी रहा, जिसमें सरकार का योगदान 23.7 फीसदी है। पूरे विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर नागरिकों द्वारा किए जाने वाले खर्च में सरकार के योगदान का औसत 55 फीसदी है।

निम्न-मध्य आय वाले 50 देशों में भारत 2014 में 39वें स्थान पर रहा। इन 50 देशों ने 2014 में जहां नागरिकों के स्वास्थ्य खर्च में औसतन 47.2 फीसदी का योगदान दिया, वहीं भारत का योगदान इससे 15.9 फीसदी कम रहा।

दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों की बात करें तो भारत का 2014 में सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च में योगदान औसत 31.3 फीसदी के आस-पास ही रहा, जो पाकिस्तान (32.1 फीसदी) से भी थोड़ा कम है, भूटान (70.7 फीसदी) की अपेक्षा में तो यह आधे से भी कम है।

ब्रिक्स देशों में भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे कम खर्च करने वाला देश रहा। ब्रिक्स देशों का औसत जहां 47 फीसदी रहा, वहीं भारत इससे 15.7 फीसदी नीचे रहा।

लांसेट ने अपने अध्ययन में 184 देशों में 1995 से 2014 के बीच आर्थिक विकास और स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च के बीच के संबंध का विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि आर्थिक विकास और स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च एकदूसरे के समानुपाती नहीं होता, लेकिन औसतन आर्थिक रूप से विकसित होने के साथ स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में सरकारी योगदान बढ़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के मुताबिक, 1995 के मुकाबले भारत में 2014 में सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं पर चार फीसदी अधिक खर्च किया, जबकि नागरिकों ने पांच फीसदी कम खर्च किया।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आधार पर भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाएं भारतीयों के कुल खर्च में से स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले खर्च में कमी लाने में असफल रही हैं।

भारत सरकार ने 2015 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.16 फीसदी जन स्वास्थ्य पर खर्च किया था और मार्च में जारी नई राष्ट्रीय नीति में इसे बढ़ाकर 2.5 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि डब्ल्यूएचओ ने जन स्वास्थ्य पर जीडीपी का पांच फीसदी खर्च करने का मानक तय कर रखा है।

भारत के लिए हालांकि अच्छी खबर यह है कि 2040 तक निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च में भारी कमी आने की उम्मीद है।

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