एक ऐसा फूल जिससे टपकती हैं अमृत की बूँदें, लेकिन पाना है बहुत मुश्किल…
ऊंचे हिमालयी क्षेत्र में आधीरात के बाद खिलकर सुबह तक मुरझा जाने वाला ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। वैद्य की मानें तो इसकी पंखुड़ियों से अमृत की बूंदें टपकती हैं। इससे कैंसर सहित कई खतरनाक बीमारियों का इलाज होता है।
ब्रह्म कमल अन्य कमल की प्रजातियों की तरह पानी में नहीं बल्कि जमीन पर खिलता है। ब्रह्म कमल जुलाई से सितंबर के मध्य केवल रात में ही खिलता है। यह मुख्य रूप से यह केदारनाथ, फूलों की घाटी, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा में पाया जाता है।
धार्मिक महत्व के अलावा इसका आयुर्वेदिक महत्व भी बताया जाता है। कैंसर, खांसी के इलाज में इसे रामबाण बताया जाता है। हिमालयी क्षेत्र में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर मिलने वाले ब्रह्म कमल को केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में प्रतिमाओं पर चढ़ाए जाते हैं।
यह चट्टानों के बीच रुकी हुई बर्फ वाले स्थानों पर खिलता है। बता दें कि, केदारनाथ वन्य जीव विहार में ऐसे 575 दुर्लभ किस्म के फूल पाए जाते हैं। मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के आसपास ऐसे फूलों की सबसे अधिक प्रजातियां पाई गई हैं।
हिमालयी क्षेत्र में मानसून के वक्त जब ब्रह्म कमल खिलने लगता है, नंदा अष्टमी के दिन देवताओं पर चढ़ाने के बाद इसे श्रद्धालुओं को प्रसाद रूप में बांटा जाता है। ऊंचाइयों पर इस फूल के खिलते ही स्थानीय लोग बोरों में भर कर इसे मंदिरों को पहुंचाने लगते हैं।
प्रतिबंध के बावजूद वे इसे प्रति फूल पंद्रह-बीस रुपए में तीर्थयात्रियों को बेचकर कमाई भी करते रहते हैं। इस पुष्प का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। आख्यान है कि इसे पाने के लिए द्रौपदी विकल हो गई थी।
यहां की जनजातियों ने सबसे पहले इस फूल के औषधीय महत्व को पहचाना था। इसके अस्तित्व को बचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।ब्रह्म कमल को स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का पुष्प माना जाता है।
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हिमालय की ऊंचाइयों पर मिलने वाला यह पुष्प अपना पौराणिक महत्व भी रखता है।
ब्रह्म कमल से जुड़ी बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनमें से एक के अनुसार जिस कमल पर सृष्टि के रचयिता स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं वही ब्रह्म कमल है, इसी में से कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी।