Vikas Dubey Ghost: क्या बिकरू गांव में विकास दुबे का भूत है? रोज रात चलती हैं गोलियां

कानपुर। कानपुर गोली कांड के मुख्य अपराधी विकास दुबे की मौत के बाद भी उसका आतंक कायम है। अब आतंक है उसके भूत का, शाम ढलते ही इस गांव में सन्‍नाटा पसर जाता है, लोग अपने घरों से बाहर निकलने में कतराते हैं। इस बीच कुछ लोगों ने दावा किया है कि उन्‍होंने विकास दुबे के भूत को वहां मंडराते देखा है। ढाई महीने पहले इसी जगह एनकाउंटर में 8 पुलिसवाले मारे गए थे, बाद में विकास दुबे की भी एनकाउंटर में मौत हुई थी।

बिकरू के रहने वालों का कहना है कि अब भी उन्‍हें रात में गोलियों की आवाजें सुनाई देती हैं। एक ग्रामीण ने अपना नाम तो नहीं बताया लेकिन कहा, ‘आज भी गोलियों की आवाज सुनाई देती है। सब जानते हैं पर बोलता कोई नहीं। कुछ लोगों ने विकास भइया के भूत को देखा भी है।’ दबी जुबान में गांव वाले कहते हें कि उन्‍हें अकसर विकास दुबे अपने घर के खंडहर पर बैठा दिखाई देता है। 2 और 3 जुलाई की रात को यहां हुए नरसंहार के बाद शासन ने उसका मकान बुलडोजर से ढहा दिया था। गांव के एक युवक ने नाम जाहिर न करने का आग्रह करते हुए कहा, “आज भी गोलियों की आवाज सुनाई देती है. सब जानते हैं, पर बोलता कोई नहीं. कुछ लोगों ने तो विकास भैया (विकास दुबे) को देखा भी है।”

एक बुजुर्ग ने बताया कि कुछ दिनों पहले जब वह रात में लघुशंका के लिए उठे तो उन्‍होंने देखा कि विकास दुबे वहां बैठा मुस्‍कुरा रहा है। बुजुर्ग ने बताया, ‘ऐसा लग रहा था कि जैसे वह हम लोगों को कुछ बताना चाह रहा था। वह अपनी मौत का बदला लेगा जरूर।’विकास दुबे के ध्वस्त घर के पास रहने वाले एक परिवार का दावा है कि उन्होंने कई तरह की आवाजें भी सुनी हैं।

हालांकि, विकास के टूटे मकान पर चार पुलिसवालों- दो पुरुष, दो महिलाओ की ड्यूटी लगी है। लेकिन ऑन रिकॉर्ड इनमें से किसी ने नहीं कहा कि उन्‍हें गोलियों की आवाजें सुनाई दीं या विकास के भूत को ‘देखा’ है। उनमें से एक कहता है, ‘हमें यहां अपनी ड्यूटी करने में कोई समस्‍या नहीं है।’ इससे ज्‍यादा वह कुछ भी कहने से मना कर देता है।

एक महिला ने कहा, “एक से ज्यादा मौकों पर, हमने खंडहर में लोगों को किसी बात पर चर्चा करते हुए सुना है, हालांकि आवाज साफ सुनाई नहीं दी. बीच में थोड़ा हंसी-मजाक भी चलने का आभास हुआ. यह काफी हद तक वैसा ही था, जैसा विकास के जिंदा रहने के दौरान घर में होता था।”

हत्याकांड के बाद बिकरू गांव में चार पुलिसकर्मी- दो पुरुष और दो महिलाएं तैनात हैं. उनमें से किसी ने भी रिकॉर्ड पर, गोलियों की आवाज सुनने या या विकास दुबे को देखने की बात नहीं स्वीकारी.

उनमें से एक ने कहा, “हमें अपनी ड्यूटी करने में कोई दिक्कत नहीं है.” और आगे बात करने से इनकार कर दिया.
एक स्थानीय पुजारी का कहना है कि स्थानीय लोगों के दावों को खारिज नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों में जहां अकाल मृत्यु हुई होती हैं, ऐसी घटनाएं होती हैं. विकास दुबे के मामले में अंतिम संस्कार ठीक से नहीं किया गया और मृत्यु के बाद की रस्में भी नहीं की गईं. ऐसा ही उसके पांचों साथियों के साथ हुआ है, जो मुठभेड़ों में मारे गए थे.”

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