बलरामपुर। आजादी के 71 साल बाद भी जनपद बलरामपुर सुविधाओं के मामले में काफी पीछे है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई, सुभद्रा जोशी, नानाजी देशमुख जैसे बड़े राजनेताओं को इस सरजमी ने सर आंखों पर बिठाया और उन्हें देश के सर्वोच्च सदन तक पहुंचाने का काम किया।
बदले में किसी ने भी इस जिले के विकास के लिए कार्य नहीं किए। जिसका खामियाजा आज तक जनपद के लोग भुगत रहे हैं। आजादी से पूर्व जिले को रेल लाइन की सुविधा मिली थी।
जिसे भाजपा सरकार आने के बाद बड़ी लाइन में तब्दील कर दिया गया। परंतु जिला मुख्यालय के मुख्य मार्गों पर कोई समपार फाटक या फिर ओवर ब्रिज नहीं बनाए गए।
जिसके कारण क्षेत्र के लोगों विशेषकर विद्यालय के बच्चों को आने जाने में काफी समस्या हो रही है। जिला मुख्यालय पर बनाए गए बाईपास मार्ग की जिस पर 2015 में ही रेल मंत्रीद्वारा ओवर ब्रिज बनाने की घोषणा की गई थी।
ओवरब्रिज बनाने की बात तो दूर अभी तक समपार फाटक भी नहीं बनाया गया। जिसके कारण बाईपास मार्ग बंद पड़ा है और लोग जान जोखिम मे डालकर रेलवे लाइन फांद कर आने जाने के लिए मजबूर हैं।
गोंडा गोरखपुर रेलवे लाइन वाया बढ़नी बलरामपुर होकर गुजरती है। इस रेलवे लाइन पर बलरामपुर जिला मुख्यालय पर बनाए गए बाईपास मार्ग पर अभी तक ना तो समपार फाटक बनाया गया है और ना ही ओवर ब्रिज बनाया गया।
वर्ष 2015 में रेलवे लाइन का आमान परिवर्तन कार्य समाप्त होने के बाद रेल मंत्री द्वारा उद्घाटन अवसर पर फुलवरिया बाईपास पर ओवर ब्रिज बनाए जाने की घोषणा की गई थी।
चार वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक ओवर ब्रिज बनने की कोई प्रक्रिया नहीं दिखाई देर ही है। इस बाईपास मार्ग से उतरौला बलरामपुर, गोंडा बलरामपुर तथा बहराइच बलरामपुर आने जाने वाले वाहन और हजारों लोगों का आना जाना होता था।
जो बड़ी लाइन बनने के बाद बंद हो गया। बड़े वाहन तो घूम कर नगर के अंदर से आते जाते हैं परंतु क्षेत्र के तमाम लोग यहां तक कि विद्यालय के छोटे-छोटे बच्चे रेलवे लाइन पार कर जान जोखिम में डालते हुए इस पार से उस पार आते जाते हैं। इन लोगों के पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है। जिले के जनप्रतिनिधि तथा अधिकारी ओवर ब्रिज के शीघ्रनिर्माण शुरू होने की बात बराबर कर रहे हैं परंतु नतीजा शून्य ही दिखाई देता है।
स्थानीय लोगों द्वारा समय-समय पर तमाम जनप्रतिनिधियों से बाईपास मार्ग पर ओवरब्रिज अथवा समपार फाटक बनाए जाने की मांग बराबर की जा रही है इसके बावजूद भी कोई सुनने वाला नहीं है। लोग परेशान हैं और जिम्मेदार लोग अपनी उपलब्धियां गिनाने में व्यस्त हैं।