अस्पताल में जांच कराने गए दो नाबालिग कैदियों को घंटो धूप में रखा गया कैद

रिपोर्ट- जावेद चौधरी

गाजियाबाद। डासना जेल से गाजियाबाद के सरकारी जिला अस्पताल में पहुंचे दो  2 नाबालिग, 2 घंटे  से ज्यादा जेल की गाड़ी में बंधक बने रहे।  मामला हॉस्पिटल की लापरवाही से जुड़ा हुआ है।

नाबालिग आरोपी

गाजियाबाद की डासना जेल से, जेल की गाड़ी में दो किशोरों को सरकारी जिला अस्पताल में लाया गया था। डासना जेल में चोरी के इल्जाम में ये कैदी विचाराधीन हैं।  इन कैदियों का अस्पताल में जुवेनाइल टेस्ट होना था। दरअसल अस्पताल में ऑर्थोपेडिक सर्जन द्वारा बच्चों की उम्र का परीक्षण किया जाता है, जिससे ये बात सुनिश्चित होती है कि कैदी नाबालिग तो नही है। लेकिन डासना जेल से गाजियाबाद लाए गए इन कैदी किशोरों के लिए सरकारी अस्पताल के पास वक्त नहीं था। लिहाजा 2 घंटे से ज्यादा किशोरों को जेल की गाड़ी में ही बंद करके रखा गया। दोनों किशोर नाबालिग बताए जा रहे हैं।

सुरक्षा के लिहाज से किशोरों को गाड़ी में बंद करके रखें जाने का हवाला दिया गया।  2 घंटे से ज्यादा बीत जाने के बावजूद अस्पताल में किशोरों का परीक्षण नहीं हुआ। गर्मी के मौसम में धूप में खड़ी जेल की गाड़ी में 2 घंटे तक दोनों किशोर बैठे रहे। जेल की गाड़ी में साथ में आये पुलिसकर्मी भी धूप में  खड़े रहे, और थकते रहे। लेकिन जब अस्पताल ने मीडिया का कैमरा देखा, तो तुरंत परीक्षण के लिए किशोरों को अंदर बुलाया गया। अस्पताल की अपनी दलील है।अस्पताल का कहना था कि एक ही ऑर्थोपेडिक सर्जन है, जो ऑपरेशन थिएटर में गए हुए थे।

इससे कुछ दिन पहले भी गाजियाबाद की डासना जेल से लाए गए, 13 किशोरों का लैब परीक्षण होना था। जिसमें काफी देरी हुई थी और परीक्षण नहीं हो पाया था। जाहिर है अस्पताल की ये देरी कानूनी प्रक्रिया को भी और देरी में तब्दील कर रही है। सुरक्षा के लिहाज से भी यह बेहद खतरनाक है।

2 घंटे तक जेल की गाड़ी में ही कैदी मौजूद रहे। इस बीच उनके साथ आए कुछ पुलिसकर्मी भी धूप में खड़े होकर पूरी तरह से थक गए। कैदी ऐसे में फरार भी हो सकते थे।  कैदियों के साथ किसी अनहोनी घटना को अंजाम भी दिया जा सकता था। धूप में खड़ी गाड़ी में झुलस रहे दोनों कैदी बेहोश हो सकते थे।

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किसी भी जेल या पुलिस द्वारा लाए गए मुलजिमों का परीक्षण अस्पताल में प्राथमिक तौर पर किया जाना है, लेकिन कैदी की गाड़ी को 2 से 3 घंटे तक अस्पताल में खड़े रहने पर मजबूर करना, कितना सही है?

ऐसे तमाम सवाल गाजियाबाद जिला सरकारी अस्पताल पर उठते रहे हैं। जिनका जवाब देने वाला कोई नहीं है। हर बार बस एक ही बात कह दी जाती है, कि मामले की जांच की जाएगी। लेकिन उसके अगले ही दिन नतीजा वैसा ही लापरवाही भरा सामने आता है, जैसा पहले था।

 

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