Tokyo Olympics : तीरंदाजी का ऐसा जुनून की 3 साल में सिर्फ 1 बार घर गईं दीपिका, बचपन में ही पिता ने पहचान ली थी प्रतिभा

टोक्यो ओलंपिक में दीपिका कुमारी को शुरु से ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। टीम स्पर्धा में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद दीपिका को व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक का दावेदार माना जा रहा है। दीपिका ने बहुत छोटी सी उम्र में ही अपनी प्रतिभा दिखा दी थी। वह आम को पत्थर मारकर तोड़ती थी। उनका अचूक निशाना देख पिता शिवनारायण महतो ने 2005 में सरायकेला-खारसांवा में अर्जुन मुंडा व मीरा मुंडा द्वारा स्थापित तीरंदाजी प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला करा दिया।

दीपिका ने यहां तकरीबन 2 साल तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। यही नहीं दीपिका ने जमशेदपुर में टाटा तीरंदाजी अकादमी द्वारा आयोजित ट्रायल में भाग लिया और उनका चयन अकादमी के लिए हो गया। यहां उन्हें आधुनिक उपकरण व अच्छे प्रशिक्षकों के साथ काम करने का लाभ मिला तो उनकी प्रतिभा निखरती ही चली गई।

दीपिका की लगन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह कभी भी अभ्यास नहीं छोड़ना चाहती थी। इसलिए वह तीन साल में सिर्फ एक बार ही अपने घर रांची गई। 2009 में कैडेट विश्व चैंपियनशिप जीतने के बाद वह अपने घर वापस गईं।
2009 में दीपिका ने महज 15 वर्ष की उम्र में अमेरिका के ओग्डेन में हुई 11वीं यूथ विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप जीती। 2009 विश्व कम में दीपिका ने डोला बनर्जी और बोम्बायला देवी के साथ महिला टीम रिकर्व इवेंट में स्वर्ण पदक जीता। इसके महज कुछ माह बाद ही चीन में ग्वांगझू में 2010 के एशियाई खेलों में दीपिका प्ले ऑफ में उत्तर कोरिया की क्वोन उन सिल से हार गई थीं।

2012 में बनी नंबर वन तीरंदाज

दीपिका ने मई 2012 में तुर्की के अंताल्या में अपना पहला विश्व कप में स्वर्ण जीता था। इसी वर्ष वह विश्व तीरंदाजी रैंकिंग में नंबर वन बनी। हालांकि 2012 के लंदन ओलंपिक में एली ओलिवर से हारने के बाद उन्हें पहले दौर में बाहर जाना पड़ा। इसके बाद कोलंबिया में आयोजित 2013 तीरंदाजी विश्व कप चरण तीन में दीपिका कुमारी ने स्वर्ण पदक जीता। फिर दो माह बाद तीरंदाजी विश्व कप में वह स्वर्ण पदक मैच में दक्षिण कोरिया के युंक ओके ही हार गईं और उन्हें रजत पदक लेकर ही संतोष करना पड़ा।

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