देश का पहला नेता जिसने कभी नहीं लड़ा चुनाव उसके बाद भी मिली 21 तोपों की सलामी

अमित विक्रम शुक्ला

राजनीति और कूटनीति के दम पर कई बड़ी सियासी जीत हासिल की जा चुकी हैं। लेकिन जब हम इस राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को मात्र चुनावी सन्दर्भ में ही देखने लग जाते हैं, तो वोट बैंक की पॉलिटिक्स थोड़ी कमज़ोर पड़ जाती है।

जोकि आजकल की राजनीतिक पृष्ठभूमि में बिलकुल भी संभव नहीं। क्योंकि आधुनिक सियासत में ‘वोट बैंक’ का महत्व उतना है, जितना फिल्मों में सलमान भाई की पहली एंट्री पर बजने वाली सीटियों का होता है। काहे की भैया रुझान यही तय करते हैं।

लेकिन आज हम उस शख्स की बात करने जा रहे हैं, जिसकी राजनीतिक कट्टरता ने ही ‘वोट बैंक’ की पॉलिटिक्स को जन्म दिया था। जिसे लोग हिंदुत्व का बड़ा, सबसे बड़ा, अम्बानी के घर (एंटीलिया) से भी बड़ा और बुर्ज खलीफा से भी ऊंचें कद वाला चेहरा मानते थे। और वो थे भी। अगर अब भी आप नहीं समझ पाएं हैं, तो कोई बात नहीं। क्योंकि हम आपके DNA पर कतई सवाल नहीं उठाएंगे।

दरअसल, हम बात कर रहे हैं। हिंदूवादी और हिन्दू ह्रदय सम्राट बाल साहेब ठाकरे के बारे में। ये वो नाम है। जिसे हर भारतवासी ने एक बार तो जरुर सुना होगा। वो भले ही आज नहीं हैं। लेकिन उनकी राजनीति के सिद्धांतो से हर कोई उन्हें आज भी याद करता है।

बाल ठाकरे

बाल ठाकरे ने एक राष्ट्रवादी दल की स्थापना की। जिसका नाम शिव सेना पड़ा। नेता के साथ-साथ ठाकरे एक कार्टूनिस्ट भी थे। यही नहीं ठाकरे एक अच्छे चित्रकार भी रह चुके हैं।

मुंबई में खूंखार अंडरवर्ल्ड का सफाया करने में बाल ठाकरे का मुख्य योगदान रहा है। जब बाल ठाकरे जिन्दा थे, तो बॉलीवुड से लेकर मुंबई के अन्य संस्थान में उन्हीं की तूती बोलती थी। बाल ठाकरे के एक इशारे से मुंबई थम सी जाती थी। इस बात से आप उनके खौफ का अंदाज़ा खुद-ब-खुद लगा सकते हैं।

बाल ठाकरे

बाल ठाकरे ने अपने सफ़र की शुरुआत एक कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। बाल ठाकरे अंग्रेजी अखबारों के लिये नेताओं, खिलाड़ियों और अन्य वर्गों के चित्रों को प्रकाशित करते थें। ठाकरे ने अपने पिता के कदमो पर चलते हुए 1966 में महाराष्ट्र में घरेलू पार्टी शिव सेना की स्थापना की। ठाकरे हिंदी और मराठी दो भाषा में पत्रिका भी निकालते थे।

वे ‘सामना’ मराठी अखबार और सामना हिंदी अखबार के जनक रहे। जो आज उनके बेटे उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे देखते हैं। बाल ठाकरे अपने खरी-खरी बातों और विवादास्पद बयानों के कारण हमेशा अखबारों की चर्चा बनते थें। ठाकरे की शख्सियत ऐसी थी, जो खुलेआम धमकी देता था। और जो मुंबई को देश की राजधानी बनाना चाहता था।

 

ठाकरे

बाल ठाकरे के दरबार में विरोधी भी हाजिरी लगाने आते थे।

प्रारंभिक जीवन

बाल ठाकरे का बचपन का नाम था ‘बाल केशव ठाकरे’ जो वक्त के साथ-साथ ‘बाला साहेब ठाकरे’ बन गया। बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे महाराष्ट्र में हुआ था। इनके पिता श्री केशव चंद्रसेनीय एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। जोकि एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक अच्छे लेखक भी थे।

धीरे-धीरे इन्होने मराठी लोगों के अंदर महाराष्ट्र के प्रति जोश भरा और हिंदूवादी विचारों की अलख जगानी शुरू कर दी। इन्होंने मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने में बहुत योगदान दिया था।

बाला साहेब की शादी श्रीमती मीना ठाकरे से हुई। इनसे 3 बेटे हुए। सबसे बड़े पुत्र बिंदुमाधव का 1996 में मौत हो गयी थीं। बिंदुमाधव के दो भाई जयदेव और उद्दव ठाकरे हैं।

बाल ठाकरे

ठाकरे अपने शुरूआती दिनों में अपनी आजीविका चित्रकार के तौर पर चलाते थे। 1960 के समय अपने भाई के साथ कार्टून के साप्ताहिक मार्मिक की शुरुआत की थी।

राजनीति में कदम

बाला साहेब ठाकरे जी ने 1966 में महाराष्ट्र राज्य में अपनी खुद की एक कट्टर हिंदूवादी संगठन की स्थापना की। इस संगठन को नाम दिया शिवसेना। इस पार्टी का चुनाव निशान धनुष बाण है और पार्टी का झंडे का कलर भगवा रंग में हैं। शुरू-शुरू में ठाकरे को ज्यादा सफलता नहीं मिली। लेकिन धीरे-धीरे शिवसेना सत्ता की मंजिल की ओर बढ़ रही।

बाल ठाकरे

1995 में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन हुआ। और उसमें यह फैसला हुआ की दोनों पार्टी महाराष्ट्र की राजनीति में एक साथ लड़ाई में खड़े रहेंगे।

भगवा

2005 में बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी में ज्यादा महत्व दिया। जिससे परिवार के दूसरे भाई के बेटे राज ठाकरे अपने चाचा से नाराज होने लगे। जोकि स्वाभाविक था।

राज ठाकरे ने शिवसेना से रास्ता काट लिया और अपनी एक अलग पार्टी बनाई। जिसका नाम ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना’ रखा। खैर इस बारे में अपनी अगली स्टोरी में विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि बाल ठाकरे ने अपने जीवन में कभी चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद भी उनकी सियासी पैठ के सभी कायल थे।

सचिन VS ठाकरे

मराठी राग अलापने वाले ठाकरे सचिन को बहुत पसंद करते थे। लेकिन एक बार जब सचिन ने यह कहा कि महाराष्ट्र पर पूरे भारत का हक है तो ठाकरे ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वह क्रिकेट की पिच पर हीं रहें, राजनीति का खेल हमें खेलने दें।

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ठाकरे ने दी संजय दत्त को नई ज़िन्दगी

बाल ठाकरे का फिल्मी दुनिया से गहरा नाता रहा है। संजय दत्त जब टाडा कानून के तहत मुश्किल में थे, उस मुश्किल वक्त में उन्हें बाल ठाकरे से हर संभव मदद मिली। जिसको दत्त फैमिली कभी नहीं भूल पायेगी।

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ख़ास बात यह है कि अपनी पूरी ज़िन्दगी में बाल ठाकरे किसी से मिलने नहीं गये।

ठाकरे

बल्कि जिसको भी उनसे मिलना होता था। वह खुद उनके घर आता था। नरेन्द्र मोदी और माइकल जैक्सन उन्ही में से हैं।

ठाकरे

ऐसा था पॉवर

बात है सन् 1990 के आसपास की है। कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद चरम पर था। कश्मीरी पंडितो को भगाया जा रहा था। अमरनाथ यात्रा चल रही थी। तभी आतंकवादियो ने यात्रा बंद करने की धमकी दे दी और कहा जो अमरनाथ यात्री आएगा वह वापस नहीं जाएगा।

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तब बाल ठाकरे ने एक बयान दिया, ‘हज के लिए जाने वाली 99 फीसदी फ्लाइट मुंबई एयरपोर्ट से जाती है। देखते हैं यहां से कोई यात्री मक्का-मदीना कैसे जाता है’। अगले ही दिन से अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई थी।

अपनी मौत से दो महीने पहले ठाकरे का एक बयान आया था कि आर्मी मेरे हवाले कर दो, मैं देश को एक महीने में ठीक कर दूंगा।

बाल साहब ठाकरे के जीवन में दुख भी बहुत थे। पहले पत्नी का निधन, फिर बड़े बेटे बिंदुमाधव की कार हादसे में मौत, फिर दूसरे बेटे जयदेव के साथ मनमुटाव और लाडले भतीजे राज ठाकरे का अलग पार्टी बनाना।

भगवा

बता दें राज ठाकरे वो आदमी थे, जिनको बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता था।

बाल ठाकरे की मृत्यु

जीवन के अंतिम दिनों में ठाकरे के स्वास्थ्य में गिरावट आती रही। जिस कारण 25 जुलाई 2012 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था। 14 नवम्बर 2012 को अस्पताल में श्री ठाकरे ने खाना-पीना त्याग दिया था।

फिर उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया और समाचार बुलेटिन में इस खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया था। बाद में उनका इलाज घर पर हुआ और उन्हें आक्सीजन के सहारे जिन्दा रखा गया। उनके चाहने वालों की मुंबई के मातोश्री घर के अंदर व बाहर लोगों की लम्बी लाइनें लगी होती थी। 17 नवम्बर 2012 को मुंबई मातोश्री में उन्होंने अंतिम साँस ली।

देश ही नहीं विदेशो में इस खबर से शोक सन्देश आने शुरू हो गए थे। बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार मुंबई के शिवाजी पार्क (दादर) में किया गया। इस यात्रा में लाखों की संख्या में लोग मातोश्री उनके घर से लेकर शिवाजी पार्क तक पैदल चले थे। शिवाजी पार्क में पूरे राजकीय सम्मान के साथ तिरंगे में लिपटे श्री ठाकरे को अंतिम विदाई दी गई।

किसी ने सही कहा है, “अंतिम यात्रा की भीड़ ही आपकी कमाई है” और उस कमाई के शहंशाह थे बाल ठाकरे। वाकई बेमिसाल थे ठाकरे।

भगवा

इस अंतिम क्रिया को देश की मीडिया ने लाइव टेलीकास्ट किया था। करोड़ों लोगों ने इस अंतिम दर्शन को अपने टेलीविजन की मदद से और सोशल नेट्वर्किंग की मदद से देखा।

इस अंतिम दर्शन में राजनीति, बॉलीवुड से और अन्य व्यवसाय के लोग शिवाजी पार्क दादर में मौजूद थें। इस अवसर पर दिल्ली से मुंबई गये आडवानी, सुषमा स्वराज, जेटली, गडकरी, मेनका गाँधी, शरद पवार और खुद मुंबई से अमिताभ बच्चन आदि लोगों ने उनको अपनी नम आखों से विदाई दी।

भगवा

बाल ठाकरे न तो मुख्यमंत्री थे और न सांसद। फिर भी उन्हें मरने के बाद ’21 तोपों की सलामी’ दी गई। जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को मिलती है। ऐसा रूतबा था बाला साहेब ठाकरे का।

ठाकरे पर फिल्म

बाल ठाकरे पर एक मराठी फिल्म भी बन चुकी है। जो 2015 ‘बाल-कडू’ नाम से आई थी। इस फिल्म में बाला साहेब ठाकरे के निजी जीवन और उनके आदर्शो को दर्शाया गया है। यह फिल्म बाला साहेब के जन्मदिन के मौके पर रिलीज किया गया था।

नवाजुद्दीन सिद्दीकी

अभी हाल ही में बाला साहेब ठाकरे पर एक हिंदी मूवी बनने जा रही है, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी उनकी भूमिका निभा रहे हैं।

देखें वीडियो:-

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