Special : व्यथा के तौर पर अभी भी प्रचलित है कोना प्रथा

राजस्थान के सिरोही और जालोर जिलों में पति की मौत के बाद महिलाओं को ऐसी व्यथा से गुजरना पड़ता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह प्रथा बड़ी व्यथा के तौर पर वर्षों से चली आ रही है और अभी भी प्रचलित है। इसके तहत पति की मौत के छह माह में विधवा के परिवार या बच्चों पर कोई अन्य बड़ा संकट भी आ जाए तब भी वह कोने से नहीं हिल सकती। यहां तक किसी भी पुरुष की छाया उस पर नहीं पड़नी चाहिए।

महिला जिस कोने में रहती है वहां उसे हाथ-पैर और पूरा शरीर ढककर रखना होता है। इसी के साथ इन्हें बाकी बची पूरी जिंदगी एक ही रंग के कपड़े से पूरे बदन को ढकना होता है। विधवा को सूरज उगने से पहले अपने सारे काम निपटाने होते हैं। उजाला होते ही उनकी जिंदगी उस कोने में सिमट जाती है। दोनों ही जिलों की बात की जाए तो रिपोर्टस के मुताबिक यहां 20 हजार से ज्यादा विधवाएं हैं। इन पर प्रथा के तहत लगने वाली बंदिशें उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती और घटती हैं।

मीडिया रिपोर्टस में इसी जगहों से जुड़ी एक कहानी और निकलकर सामने आई जिसे सुन आप सिहर उठेंगे। रिपोर्टस में एक महिला का जिक्र है जिसके पति को गुजरे हुए दो माह गुजर चुके हैं। महिला दो माह से घर के खुले बरामदे में कोने में बैठकर अपना जीवन गुजार रही है। वह खुले बरामदे में खुद को ढककर कभी धूप से तपकर तो कभी भीगकर यह समय काट रही है। उसका एक 5 साल का बच्चा भी है जो डॉक्टरों के अनुसार कैंसर के शुरुआती लक्षणों से ग्रसित है। हालांकि महिला अभी 4 माह और उसी कोने में गुजाकर फिर अपने पीहर जाकर आएगी तब यह प्रथा पूरी होगी। तब तक उसका बच्चा राम भरोसे रहेगा।

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