RTI के तहत ये जानकारियां देने से कामकाज में होगा नुकसान…

उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री ने बुधवार को उससे कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति या पदोन्नति के संबंध में कॉलेजियम की चर्चा जैसी उच्च गोपनीय सूचनाओं को सार्वजनिक करना न्यायपालिका के ‘‘कामकाज के लिए नुकसानदेह’’ होगा।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने वर्ष 2010 में दायर तीन अपीलों पर सुनवाई शुरू की। ये अपीलें उच्चतम न्यायालय के महासचिव और शीर्ष अदालत के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ दायर हुई थीं कि सीजेआई कार्यालय सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है।

उच्चतम न्यायालय के महासचिव की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का जिक्र किया और कहा कि पहला मामला केन्द्रीय सूचना आयोग के न्यायमूर्ति ए पी शाह, न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति वी के गुप्ता को नजरअंदाज करके पूर्व न्यायाधीशों एच एल दत्तू, आर एम लोढ़ा और ए गांगुली की नियुक्ति के मुद्दे पर सरकार के साथ कॉलेजियम के संवाद और इसमें हुए विचार विमर्श का खुलासा करने का निर्देश देने से जुड़ा है।

विधि अधिकारी ने कहा कि दूसरा मामला शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की निजी संपत्ति के खुलासे पर सीआईसी के निर्देश से जुड़ा है।

वेणुगोपाल ने आरटीआईे के तहत कॉलेजियम में हुए विचार विमर्श सार्वजनिक करने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की संपत्तियों की जानकारी निजी सूचना है और यह निजता के अधिकार में आता है लेकिन इसे ‘‘वृहद जनहित में’’ उपलब्ध कराया जा सकता है।

वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, ‘‘इतनी अधिक गोपनीय सूचना का खुलासा न्यायपालिका के कामकाज के लिए नुकसानदेह होगा।’’

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पीठ बृहस्पतिवार को इस मामले में आगे सुनवाई करेगी जब वकील प्रशांत भूषण आरटीआई कार्यकर्ता एस सी अग्रवाल की तरफ से दलीलें देंगे। अग्रवाल की याचिका पर ही उच्च न्यायालय के फैसले आए हैं।

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