मोदी की सभा में पानी को तरसे लोग, सड़कों पर बहा हजारों लीटर मट्ठा

मंडला| गर्मी में पानी जहां गले को तर करता है तो वहीं मट्ठा (छाछ) गर्मी से राहत दिलाने में मददगार होता है, मगर इस तपती गर्मी में मध्य प्रदेश के मंडला जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रवास के दौरान जहां रामनगर के लोग पानी के लिए तरसते नजर आए, तो सड़कों पर मट्ठा बिखरा रहा।

सड़कों पर मट्ठा
प्रधानमंत्री मंगलवार को मंडला जिले के रामनगर में आयोजित राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस और आदि उत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए, इसके लिए सरकार और प्रशासन ने आने वालों के लिए सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक तरफ तो सभी को बसों में भर कर लाया गया था, तो दूसरी ओर सभा में आने वालों के पीने के पानी के लिए जगह-जगह टैंकर और टंकियां स्थापित की गई थी, वो भी नाकाफी थे। वहीं गांव के लोग पूरे दिन पानी के संकट से जूझते रहे।

रामनगर में नर्मदा नदी के तट पर आयोजित इस समारोह स्थल के लगभग एक किलोमीटर के क्षेत्र में जगह-जगह खाना वितरण के लिए टेंट लगाए गए, तो पानी के पाउच का वितरण किया गया, इतना ही नहीं आने वालों को गर्मी से राहत दिलाने के लिए भारी तादाद में मट्ठा के पैकेट भी मंगाए गए। सभा में आए लोगों को पीने के पानी के साथ मट्ठा तो मिला, मगर रामनगर के स्थानीय नागरिक का पानी संकट बना रहा।

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यहां पहुंचे रामू लाल ने बताया कि वे यहां प्रधानमंत्री मोदी की बात सुनने आए थे, मगर कुछ देर से पहुंचने पर उन्हें सभा स्थल तक नहीं जाने दिया गया। रामू सवाल करते हैं कि यहां आने का क्या फायदा हुआ, खाना मिला, पानी मिला और मट्ठा के पैकेट दिए, यह सभी तो घर में ही मिल जाता।

सभा खत्म होने के बाद हर व्यक्ति के हाथ में एक से दो मट्ठा के पैकेट थे, जो सांची दुग्ध संघ के थे। कोई एक पी रहा था तो दूसरा भरा हुआ पैकेट सड़क किनारे फेंके जा रहा था। आलम यह था कि लगभग हर 50 मीटर की दूसरी पर सैकड़ों की संख्या में भरे हुए भट्ठा के पैकेट पड़े हुए थे। लाई और गुड़ के लड्डू बेचने वाली महिला के बाजू में मट्ठा के पैकेटों का अंबार लगा हुआ था, उससे पूछा कि क्या तुम मट्ठा भी बेच रही हो, तो उसका जवाब था कि यह हमारे नहीं हैं, लोग फेंक-फेक कर गए हैं।

रामनगर के शिवचरण ने बताया कि उनके लिए तो पानी बड़ी समस्या है, पीने के पानी का इंतजाम काफी कठिन काम है, कई घंटे तो पानी के इंतजाम में ही गुजर जाते हैं। दूसरी ओर मट्ठा के पैकेट पड़े देखकर मन दुखी हुआ। कुआं और हैंडपंप सूखे हैं, नल जल योजना से बहुत सीमित पानी आता है।

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सभा स्थल से वाहन पार्किंग तक जाने के लगभग एक किलोमीटर लंबे मार्ग में कई स्थानों पर मट्ठा के भरे हुए पैकेट ऐसे पड़े थे मानों कि उन्हें जान बूझकर फेंका गया हो। सभा में आए लोगों का कहना था कि वे यहां मट्ठा पीने थोड़े आए थे, वे तो प्रधानमंत्री से कुछ पाने आए थे जो उन्हें नहीं मिला।

जबलपुर संभाग के आयुक्त गुलशन बामरा से जब आयोजन के इंतजामों को लेकर चर्चा की गई तो उनका जवाब था कि मट्ठा के पैकेट का किसने इंतजाम किया और कितनी तादाद में मंगाए गए, उसकी उन्हें जानकारी नहीं है। इसका ब्योरा तो मंडला जिलाधिकारी से ही मिल सकता है।

मंडला जिलाधिकारी सोफिया फारुकी से कई बार संपर्क किया गया, मगर उन्होंने अपना मोबाइल फोन ही नहीं उठाया जिससे मट्ठा आपूर्ति का ब्योरा नहीं मिल सका।

वहीं सांची दुग्ध संघ की प्रबंध संचालक अरुणा गुप्ता ने संवाददाताओं को बताया कि मंडला जिलाधिकारी ने तीन लाख मट्ठे के पैकेट मंगाए थे, अब किसने और क्यों फेंके इसकी मुझे जानकारी नहीं है।

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