पॉलिटिकल रणनीतिकार ‘पीके’ ने बिहार में किया राजनीतिक पारी का आगाज

पटना। करीब साढ़े चार साल पहले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में हवा बनाने और उसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजयी रथ को रोकने के मुख्य रणनीतिकार और ‘बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है’ का नारा गढ़ने वाले प्रशांत किशोर (पीके) अब किसी भी पार्टी की रणनीति नहीं बनाएंगे, बल्कि खुद राजनीति करेंगे।

प्रशांत किशोर

वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘काम बोलता है’ नारा देकर समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को जिताने में नाकाम रहे पीके बिहार में सत्ताधारी जनता दल (युनाइटेड) की सदस्यता ग्रहण करने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ है, लेकिन उनकी भूमिका को लेकर कयासों का बाजार भी गर्म है। इधर, बिहार की सियासत में यह भी प्रश्न तैर रहा है कि पीके क्या नीतीश के ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि को फिर से भुना पाएंगे?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पीके के जद (यू) की कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद यह तय है कि अब वह अन्य राजनीतिक दलों के लिए चुनाव प्रबंधन का काम नहीं करेंगे, बल्कि जद (यू) की ओर से सीधे जनता के बीच जाएंगे।

वैसे, हाल के दिनों में विपक्ष जिस तरह से हावी है और राज्य में अपराधों की बाढ़ आ गई है, उससे यह साफ है कि नीतीश की शासन पर पकड़ पहले के मुकाबले कमजोर हुई है। दूसरी बात यह कि जनादेश प्राप्त महागठबंधन को छोड़कर भाजपा को पिछले दरवाजे से सत्ता में ले आने से नीतीश की उस पुरानी छवि में बट्टा जरूर लगा है।

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मजबूत विपक्ष भी नीतीश को ‘पलटीमार’ की उपाधि देकर और उनका ‘नैतिक इकबाल’ खत्म हो जाने का प्रचार कर उनके खिलाफ हवा बनाता रह है और नीतीश के ‘इमेज’ पर सवाल उठाता रहा है।

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले पटना के वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं, “प्रशांत किशोर के आने से नीतीश कुमार को सोशल मीडिया में चुनाव प्रचार में बढ़त मिलना तय है।”

वह कहते हैं कि नीतीश की पार्टी जद (यू) जहां चुनावी रणनीति बनाने में पीके के आने से अव्वल नजर आएगी, वहीं चुनावी कार्यालय भी दुरुस्त होगा। हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि प्रशांत किशोर के पार्टी में आने का स्थानीय वोटरों पर असर पड़ेगा या जद (यू) को कोई विशेष लाभ होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता।

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किशोर यह भी अनुमान लगाते हैं कि पीके चुनावी प्रबंधन में सक्षम हैं, ऐसे में उन्हें लगा होगा कि बिहार में राजग मजबूत है, वरना वह जद (यू) का तीर नहीं थामते।

जद (यू) के एक नेता की मानें तो नीतीश बिहार की राजनीति में सोशल मीडिया के जरिए तेजी से पैर जमा रहे तेजस्वी यादव के सामने एक वैकल्पिक चेहरे के तौर पर प्रशांत किशोर को पेश करेंगे। किशोर की इस मामले में जो इमेज है, उसे नकारा भी नहीं जा सकता।

वैसे बिहार में चुनाव जातीय आधार पर लड़े जाते हैं और परिणाम भी उसी तरह से आते रहे हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर जातीय गणित में विशेष कुछ कर पाएंगे, इसमें शक है।

राजद के प्रवक्ता मृत्यंजय तिवारी कहते हैं कि चुनाव में किसी पार्टी को वोटर विजयी बनाते और हराते हैं। अगर जिताने का जादू प्रशांत किशोर के हाथ में होता, तो उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन को क्यों नहीं जीत दिला सके।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद के जादुई करिश्मे का प्रभाव था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते बिहार में भाजपा के खिलाफ मौहौल बना और महागठबंधन की जीत हुई थी।

हालांकि जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार मानते हैं कि प्रशांत किशोर को पार्टी में लाया जाना नीतिगत फैसला है। किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति के आने से पार्टी मजबूत होती है और कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होता है।

वैसे, प्रशांत किशोर के चुनाव लड़ने पर भी यहां चर्चाओं का बाजार गर्म है। चर्चा है कि प्रशांत किशोर बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। फिलहाल यहां के सांसद भाजपा के अश्विनी चौबे हैं।

बहरहाल, प्रशांत किशोर के जद (यू) में आने के बाद इतना तय है कि रणनीति के मामले में राजग ज्यादा मजबूत होगी, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव केवल रणनीति से ही नहीं जीते जा सकते, जनाधार भी बनाना पड़ता है।

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