नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री के दर्शन को देर रात से उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

रिपोर्ट काशीनाथ
वाराणासी। शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन जगत जननी माँ जगदम्बा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री माता के रूप में विख्यात है ! वाराणसी में नवरात्री के प्रथम दिन माता शैलपुत्री देवी के अलईपुर क्षेत्र स्थित मंदिर में भक्तो की भारी भीड़ रही। वाराणसी में देवी भगवती के नव स्वरूपों में अलग अलग मंदिर है।

शारदीय नवरात्रि

जहां नवरात्रि के प्रथम दिन से लेकर नवमी तक जगदम्बा के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन की मान्यता है! नवरात्रि का पर्व शुरू होते ही नौ दिनों में देवी पूजा का विशेष महात्व है। दुर्गा का अर्थ है , परमात्मा की वह शक्ति, जो स्थिर और गतिमान है, लेकिन संतुलित भी है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए शक्ति का होना जरूरी है और शक्ति की साधना का पथ अत्यंत गूढ और रहस्यपूर्ण है।

शारदीय नवरात्रि

हम नवरात्रि में व्रत इसलिए करते हैं, ताकि अपने भीतर की शक्ति, संयम और नियम से सुरक्षित हो सकें, उसका अनावश्यक अपव्यय न हो। संपूर्ण सृष्टि में जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसे अपने भीतर रखने के लिए स्वयं की पात्रता तथा इस पात्र की स्वच्छता भी जरूरी है।धर्म की नगरी काशी में भी नवरात्री के नौ दिनों में देवी के अलग अलग रूपों की पूजा विधिवत की जाती है! जिसमे सबसे पहले दिन माता शैल पुत्री के दर्शन का विधान है।

शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है, माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं. नवरात्रि के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।

भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री के रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्रीकहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इन्हें पार्वती स्वरुप माना जाता है। ऐसी मान्यता है की देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी, मान्यता है की इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं।

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माँ की महिमा का पुराणों में वर्णन मिलता है की राजा दक्ष ने एक बार अपने यहां यज्ञ किया और सारे देवी देवतायों को बुलाया मगर श्रृष्टि के पालन हार भोले शंकर को नहीं बुलाया, इससे माँ नाराज हुई और उसी अग्नि कुण्ड में अपने को भष्म कर दिया, फिर यही देवी सैल राज के यहा जन्म लेती है शैलपुत्री के रूप में और भोले भंडारी तदैव प्रसन्न करती है।

वाराणसी में माँ का अति प्राचीन मंदिर है, जहां नवरात्रि के पहले दिन हजारों श्रधालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। हर श्रद्धालु के मन में यही कामना होती है कि माँ उनकी मांगी हार मुरादों को पूरा करेंगी। माँ को नारियल और गुड़हल का फूल काफी पसंद है! शारदीय नवरात्रि पर कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है। पहले दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है। भक्तो की भादि भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम पूरे मंदिर परिसर सहित आस-पास के क्षेत्रो के करते हुए बैरिकेडिंग भी की गयी हैं ताकि जल्द दर्शन करने की होड़ में भक्तो के बिच भगदड़ न हो।

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